सोडाला में कई पीढिय़ों से दिए बनाने का कार्य करने वाले हरी नारायण प्रजापत बताया कि इस कारण न केवल कुम्हारों के पुश्तैनी करोबार पर असर पड़ा है बल्कि उनकी रोजी-रोजी रोटी पर भी बड़ा खतरा मंडरा रहा है। जिस दिए को कुम्हार चक्के पर अपने हाथों से मिट्टी को आकार देता था वह दिया कुम्हार को वर्ष भर की एक मुश्त कमाई होती थी। उसकी जगह अब चाइना मेड दिए, चीनी मिट्टी और बिजली की झालरों ने ली है। जिसकी वजह से उनकी रोजी रोटी को भी संकट खड़ा हो गया है।
रहता था सालभर इंतजार इस महापर्व का जहां कुम्हार को वर्ष भर इंतजार रहता था और अपने घर की गाड़ी बेहतर तरीके से खीचने के लिए रात दिन चक्के पर मिट्टी के दिए और बर्तनों का आकार देने में बिताता था। पहले दीपावली में लोग घरों में घी के दिए जलाते थे। धीरे-धीरे समय बदलने के साथ सरसों लेकिन अब यह समय भी जाने वाला है। इस कला को पीढिय़ों से जिंदा कर आज भी चक्के पर मिट्टी के दिये और बर्तनों को आकृति देने वाले कुम्हार परिवारों के अनुसार यह कला उन्हें अपने बाप-दादा की विरासत में मिली है इसी वजह से काम कर रहे हैं लेकिन अब वे इसे अपने परिवार को आगे नहीं देना चाहते हैं।
मिट्टी हुई महंगी
बाजार में मिट्टी महंगी हो गई है जिसकी वजह से इस बार बाजार में छोटे दिए करीबन पचास रुपए सैकड़ा और बड़ दिए सौ रूपए सैंकड़े के भाव बिक रहे हैं इसी के साथ उससे बड़े दिए का भाव तीन से पांच रूपए प्रति दिए की दर से बेचे जा रहे हैं।
बाजार में मिट्टी महंगी हो गई है जिसकी वजह से इस बार बाजार में छोटे दिए करीबन पचास रुपए सैकड़ा और बड़ दिए सौ रूपए सैंकड़े के भाव बिक रहे हैं इसी के साथ उससे बड़े दिए का भाव तीन से पांच रूपए प्रति दिए की दर से बेचे जा रहे हैं।
कुम्हारों की नदी हवामहल रोड पर ख्वास जी के रास्ते के आगे का रास्ता कुम्हारों की नदी कहलाता था जहां पर कुम्हार परिवार रहा करते थे लेकिन अब यहां पर कुम्हारों के कुछ ही परिवार रह गए हैं जो मिट्टी से बरतन दिए बनाने का काम करते हैं।