पहले भी हो चुके हैं हादसे
जून 2006 में आदर्श नगर स्थित सूरज मैदान में साध्वी ऋतम्भरा ( sadhvi ritambhara ) की श्रीमद्भागवत कथा समाप्त होने के बाद आई तेज बारिश और आंधी के कारण पंडाल गिरने से दो श्रद्धालुओं की मौत होने के साथ ही 19 लोग घायल हो गए थे। अक्टूबर 2010 में गढग़णेश में लोहे की रेलिंग में अचानक करंट दौडऩे से बड़ा हादसा होने से टल गया था। यहां संकरा रास्ता होने पर भीड़ होने के बावजूद लोगों को नहीं रोका गया था।
इन कार्यक्रमों में आयोजक श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं किए जाते। कई जगहों पर अनुमति के बाद प्रशासन-पुलिस की तरफ से नियमित मॉनिटरिंग तक नहीं की जाती। नगर निगम के मुख्य अग्निशमन अधिकारी जगदीश फुलवारिया का कहना है कि बड़ी जगहों पर जगह की, फायर एनओसी से लेकर हर एक व्यवस्था का ध्यान रखने के बाद अनुमति दी जाती है। छोटी जगहों पर निगरानी रखना संभव नहीं होता।
इन दिनों आयोजक डोम बनाने की बजाय टैंट लगाने के साथ खानापूर्ति कर लेते हैं। क्योंकि इनका किराया कम होता है। टैंट डीलर्स एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष रवि जिंदल ने बताया कि कुछ साल पहले जहां आयोजनों में बांस बल्ली के जरिए टैंट लगाए जाते थे, इससे दुर्घटना होने की आशंका बिल्कुल नहीं होती थी। आजकल फैंसी काम के चलते सभी जगह पर लोहे का फ्रेम लगाकर यह काम किया जा रहा है। भारी होने की वजह से ढह जाता है और पोल में करंट आने से हादसे का अंदेशा बना रहता है।
-जगरूप सिंह यादव, जिला कलक्टर, जयपुर
बाड़मेर के हादसे के बाद प्रदेश में समिति की ओर से कहा गया है कि आयोजन की जगह, प्रशासनिक अनुमति के बाद ही काम पूरा किया जाए। इसके साथ ही आंधी, बारिश के मौसम में लोगों को सलाह देकर ही काम किया जाता है।
-रवि जिंदल, प्रदेशाध्यक्ष, राजस्थान टैंट डीलर्स समिति