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किस्सा किले का: रावण ने इस दुर्ग में लिए थे मंदोदरी संग सात फेरे, मुगलों को सदियों तक भारत से रखा था दूर

राजस्थान के जोधपुर जिले का वो किला जहां मान्यता है कि रावण ने मंदोदरी संग सात फेरे लिए... आइए आज बताएं मंडोर किले का किस्सा...

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जयपुर

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Nidhi Mishra

Jun 16, 2018

Kissa Kile Ka- history of Mandore Fort Jodhpur in Hindi

Kissa Kile Ka- history of Mandore Fort Jodhpur in Hindi

जयपुर/जोधपुर। राजस्थान के जोधपुर जिले का वो किला जहां मान्यता है कि रावण ने मंदोदरी संग सात फेरे लिए... आइए आज बताएं मंडोर किले का किस्सा...

मण्डोर का पुराला नाम 'माण्डवपुर' या 'मांडव्यपुर' था। मांडव्यपुर एक समय मारवाड़ राज्य की राजधानी थी। राव जोधा को मंडोर असुरक्षित लगने लगा तो उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से चिड़िया कूट पहाड़ी पर मेहरानगढ़ का निर्माण करवाया और अपने नगर का नाम रखा... जोधपुर।

रावण संग मंदोदरी ने लिए थे सात फेरे
राजस्थान प्रदेश में ऐसी लोक मान्यता है कि लंकापति रावण और मंदोदरी का विवाह जोधपुर के मंडोर में हुआ था। मतलब ये कि मंदोदरी मंडोर की राजकुमारी थी। कुछ मान्यताओं और किंवदंतियों के मुताबिक रावण की ससुराल जोधपुर के मंडोर को माना जाता है। ऐसा माना और कहा जाता है कि रावण ने यहीं पर मंदोदरी के साथ सात फेरे लिए थे। हालांकि इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण नहीं मिलता है, लेकिन मंडोर में आज भी रावण की पूजा होती है। यहां दशहरे में रावण दहन भी नहीं होता।

उल्टा है मंडोर का किला
जोधपुर के मंडोर उद्यान में चौथी शताब्दी ईस्वी के दौरान बसे मांडव्यपुर मंडोर किले को उल्टा किला भले ही कहा जाता हो, लेकिन किला कभी उल्टा हुआ ही नहीं है। मंडोर उद्यान के उत्तर पश्चिम में पहाड़ी पर स्थित किला हमेशा से ही इतिहासकारों व जोधपुवासियों के लिए कौतूहल का विषय रहा है। सदियों से उल्टे किले के नाम से प्रसिद्ध ध्वंसावशेष के साथ यह मान्यता जुड़ी है कि यह किसी श्राप अथवा प्राकृतिक आपदा के चलते उल्टा हुआ है। पिछले दो दशकों से किले की खुदाई से इससे जुड़ी भ्रांतियों पर से धूल हटने लगी है। ब्रिटिश अधिकारियों की वर्ष 1883 व सर मार्शल की 1917 में सचित्र प्रामाणिक रिपोर्ट में भी किले के उल्टे होने का कोई उल्लेख नहीं है। जोधपुर के इतिहासविद् भी किले के उल्टे होने की बात को कोरी कल्पना व अफवाह मात्र मानते हैं।

इतिहासकारों व शोधार्थियों के लिए शोध का विषय रहे मंडोर किले की वास्तविकता यह है कि वर्ष 1917 में भारत के विभिन्न स्थानों पर शोध करने वाले इतिहासविद मार्शल ने सीधे किले की मय तोरणद्वार सचित्र रिपोर्ट सौंपी थी। पाषाण के 12 फुट लंबे और 2 फुट चौड़े कलात्मक तोरणद्वार आज भी उम्मेद उद्यान स्थित राजकीय सरदार संग्रहालय में सुरक्षित है और उन्हें देखा जा सकता है। चौथी शताब्दी के विशाल पाषाण तोरण स्तंभ पर भगवान कृष्ण लीलाओं-कृष्ण द्वार, गोवद्र्धन पर्वत धारण करते कृष्ण, दधिमंथन, शकटभंग, अरिष्ठासुर दैत्य से युद्ध तथा केशीनिषुदन का मार्मिक चित्रण है। इतिहासकार पिछले दो दशक से मारवाड़ की प्राचीन राजधानी मंडोर के किले से जुड़ी भ्रांतियों पर जमी धूल हटाकर मिथक और अफवाहों के कारण उल्टा कहे जाने वाले मंडोर किले के रहस्य से पर्दा हटाने के लिए में जुटे हैं।

इन्दा परिहारों ने राठौड़ों को सौंपा था किला

खुदाई के दौरान मिले विक्रम संवत 894 के एक शिलालेख के अनुसार मंडोर में नागवंशी क्षत्रियों का राज्य था, जिन्हें प्रतिहारों ने पराजित कर अपना साम्राज्य और किला स्थापित किया। इन्दा परिहारों ने सन् 1394 में राठौड़ों को दुर्ग दिया, जो बाद में वर्ष 1459 में जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग निर्माण कर वहीं रहने लगे।

इसे किसने बनाया, पता नहीं

एएसआई के उपअधीक्षक पुरातत्ववेत्ता डॉ. ए झा के अनुसार सातवीं से बारहवीं शताब्दी के बीच यहां मंदिर भी स्थापित किए गए थे। जो उस समय के लोगों की धार्मिक आस्था को उजागर करते हैं। इतिहास में कहीं किसी किले या इसे बसाने वाले राजा का नाम अभी तक सामने नहीं आया है। खुदाई में भी अब तक एेसा कोई अवशेष नहीं मिला है, जिससे किले के निर्माता का नाम उजागर हो सके।

खजाने की चर्चा और एक मात्र गार्ड!

जिस मंडोर किले को पाने के लिए राव जोधा लंबे अर्से तक जंगलों में भटकते रहे वही किला अब पुरातत्व विभाग के एकमात्र कर्मचारी के हवाले है। हालांकि मंडोर किले के बारे में यह चर्चा या अफवाह उड़ती रहती है कि यहां बड़ा खजाना दबा हुआ है।

इतिहासविदों का कहना है

चौथी शताब्दी में बने मंडोर किले में नागवंशियों, परमान, चौहान, प्रतिहार राजाओं के बाद 1453 में राठौड़ों का राज्य स्थापित हो गया। सामरिक दृष्टि से मंडोर किला सुरक्षित नहीं होने के कारण राव जोधा ने मेहरानगढ़ किले का निर्माण करवाया और मंडोर किला जर्जर होता चला गया। महाराजा जसवंतसिंह ने 1890 में योजनाबद्ध तरीके से मंडोर किला परिसर को विकसित करना आरंभ किया।

मंडोर में जनाना महल और देवलों के निर्माण पर ही ज्यादा ध्यान दिया गया। नतीजतन किला खण्डहर में तब्दील हो गया। किले में निर्मित मंदिरों के प्लेटफार्म और मूर्तियां सही होना साबित करता है कि मंडोर किला कभी भी उल्टा नहीं हुआ था। कर्नल टॉड के 1818 में मंडोर विजिट करने का उल्लेख मिलता है। अब एएसआई के अधीन किले के साथ पुरातत्व विभाग, उद्यान विभाग, सिंचाई विभाग, पीडब्ल्यूडी, देवस्थान आदि जुडऩे के बाद कोई भी विभाग ध्यान नहीं दे रहा है। - एमएस तंवर, सहायक निदेशक मेहरानगढ़ फोर्ट

तो प्रवेश द्वार भी उलटा होता

सन 1917 में ब्रिटिशकाल के इतिहासकार सर मार्शल और बहल की संयुक्त सचित्र प्रामाणिक रिपोर्ट में मंडोर किला कभी भी उल्टा होने का कोई उल्लेख नहीं किया गया। सचित्र रिपोर्ट में तोरणद्वार का चित्र भी प्रकाशित है। जर्जर होने के कारण वहीं तोरण द्वार आज सरदार राजकीय संग्रहालय में सुरक्षित रखे हुए है। रही बात खजाना दबे होने की, तो राव जोधा ने जब राजधानी को मेहरानगढ़ शिफ्ट कर दिया, तो भला खजाना वहां क्यों छोड़ेंगे। एेसी कई काल्पनिक बातें बनती हैं और समानान्तर चलती रहती हैं। यदि भूकंप से जर्जर किला ढह जाता है, तो वह उल्टा कैसे हो सकता है। मार्शल की रिपोर्ट एएसआई के रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं है। -जहूर खां मेहर, इतिहासविद

चरणबद्ध संरक्षण होगा

हमारे पास आज तक जितने भी मंडोर किले की एेतिहासिक रिपोर्ट व दस्तावेज है, उनमें कहीं भी मंडोर किले के उल्टा हो जाने की कोई बात नहीं कही गई है। विभाग की ओर से मंडोर किले की दीवार को चरणबद्ध तरीके से संरक्षित की शुरुआत मंदिरों की दीवारों से की जाएगी। किले के पास जमीन को हरा भरा करने के लिए प्रचूर मात्रा में पानी उपलब्धता देखते हुए हरा भरा किया जाएगा। वर्तमान में हमारे अधीन संरक्षित स्मारकों की सुरक्षा के लिए स्टाफ की कमी है। करीब सौ पदों में से 55 रिक्त हैं। मंडोर किले की सुरक्षा के लिए एकमात्र स्टाफ तैनात है -श्रीरमन, अधीक्षक, आर्कियोलोजिक सर्वे ऑफ इंडिया जोधपुर