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जेेकेके में ‘लोकरंग’ वर्कशॉप: बणी-ठणी का चित्र बना युवा चित्रकारों की पहली पसंद

locationजयपुरPublished: Oct 15, 2019 07:41:53 pm

Submitted by:

abdul bari

जवाहर कला केन्द्र ( JKK Jaipur ) में 10 दिवसीय ‘लोकरंग’ के तहत विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के अतिरिक्त कलात्मक गतिविधियां भी आयोजित ( Lokrang program ) की जा रही है। इन गतिविधियों के एक भाग के रूप में शिल्पग्राम परिसर में आयोजित विभिन्न कार्यशालाएं शामिल हैं। ( Bani-thani picture )

जेेकेके में 'लोकरंग' वर्कशॉप: बणी-ठणी का चित्र बना युवा चित्रकारों की पहली पसंद

जेेकेके में ‘लोकरंग’ वर्कशॉप: बणी-ठणी का चित्र बना युवा चित्रकारों की पहली पसंद

जयपुर
जवाहर कला केन्द्र ( JKK Jaipur ) में 10 दिवसीय ‘लोकरंग’ के तहत विभिन्न सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के अतिरिक्त कलात्मक गतिविधियां भी आयोजित ( Lokrang program ) की जा रही है। इन गतिविधियों के एक भाग के रूप में शिल्पग्राम परिसर में आयोजित विभिन्न कार्यशालाएं शामिल हैं। किशनगढ़ चित्र शैली, टेराकोटा पोट्स, फड़ पेन्टिंग्स और पेपर मैकिंग पर आयोजित इन निःशुल्क कार्यशालाओं में यहां तक कि निर्माण सामग्री जैसे रंग, कागज और ब्रश भी जेकेके द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही है। इन कार्यशालाओं में स्कूल एवं कॉलेज के विद्यार्थियों के अतिरिक्त विजिटर्स भी अपना हाथ आजमा रहे हैं।

बणी-ठणी का चित्र बना युवा चित्रकारों की पहली पसंद ( Bani-thani picture )

जयपुर के खुश नारायण जांगिड़ द्वारा संचालित किशनगढ़ चित्र शैली की वर्कशॉप में प्रतिदिन लगभग 15 से 20 बच्चे और बडे़ विजिटर्स बणी-ठणी की पेंटिंग में रंग उकेर कर अपनी कला को साकार करते नजर आ रहे हैं। यहां की वर्कशॉप में बच्चों के मध्य किशनगढ़ की बणी-ठणी का चित्र सर्वाधिक लोकप्रिय है। बणी-ठणी के चित्र पर रंग उकेर कर ये बच्चे अपनी छिपी हुई कला प्रतिभा को प्रदर्शित करते नजर आए।
बणी-ठणी की पेंटिंग कला, प्रेम और भक्ति का प्रतीक

जांगिड ने बताया कि किशनगढ़ शैली का स्थान राजस्थान की 9 चित्रकला शैलियों में शामिल है। इसमें 1700 शताब्दी में किशनगढ के महाराजा सावन्त सिंह, जो नागरी दास नाम से भी जाने जाते हैं, ने इस शैली में अपने चित्रकार निहालचंद से बणी-ठणी का चित्र बनवाया था। बणी-ठणी की पेंटिंग कला, प्रेम और भक्ति का प्रतीक है।
साइड फेस पर आधारित इस पेंटिंग की तुलना एरिक डिक्सन ने ‘मोनालिसा’ से की थी। तीखी नाक और खंजन पक्षी के समान आखें इस चित्र की प्रमुख विशेषताओं में शामिल है, जो अन्य किसी पेंटिंग में देखने को नहीं मिलती। इस शैली में सफेद, गुलाबी और हरे रंग का प्रयोग बहुतायत से किया जाता है। हालांकि यह शैली कांगडा चित्र शैली के काफी करीब मानी जाती है।
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