शुद्ध लाभ का 18 प्रतिशत हिस्सा आयकर देना ही होगा
देश का अपनी तरह का पहला फैसला
– हाईकोर्ट ने न्यूनतम आयकर चुकाने के प्रावधान को वैध ठहराते हुए दिया आदेश- एएसजी रस्तोगी के कानून की भावना देखने के तर्क पर लगाई मोहर
हाईकोर्ट ने आयकर अधिनियम के तहत हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में स्थापित औद्योगिक इकाईयों से भी शुद्ध लाभ का 18 प्रतिशत हिस्सा आयकर के रूप में लेने के प्रावधान को वैध ठहराया है। इस मामले में अतिरिक्त सॉलीसिटर राजदीपक रस्तोगी ने कानून की संवैधानिकता के लिए उसे लाने की भावना देखने का तर्क दिया गया, जिसके बाद कोर्ट ने आयकर कानून में संशोधन की वैधता पर मोहर लगा दी। आयकर अधिनियम में संशोधन को संवैधानिक चुनौती के लिए दायर याचिका खारिज करने का हाईकोर्ट का यह फैसला देश में पहली बार हुआ है और इस फैसले के दूरगामी परिणाम आयकर विभाग के पक्ष में सामने आएंगे।
न्यायाधीश के एस झवेरी व न्यायाधीश वी के व्यास की खण्डपीठ ने मैसर्स एस बी एल लिमिटेड़ फार्मा की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश दिया। प्रार्थीपक्ष की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता कंपनी उत्तराखंड के हरिद्वार के पास स्थित है और आयकर अधिनियम की धारा 80 आइ सी के तहत हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में स्थित औद्योगिक इकाई को आयकर से पूर्णत: छूट देने का प्रावधान है। एेसे में आयकर अधिनियम की धारा ११५ जे बी के तहत किसी भी कंपनी के शुद्ध लाभ से आयकर वसूलने का प्रावधान असंवैधानिक है। आयकर विभाग की ओर से अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल राजदीपक रस्तोगी ने कहा कि आयकर अधिनियम की धारा ८० आइ सी के तहत हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड में स्थित इकाई को आयकर भुगताने से पूर्णत: छूट है, लेकिन आयकर अधिनियम की धारा 115 जे बी के तहत किसी भी कंपनी को शुद्ध लाभ का कम से कम 18 हिस्सा आयकर के रूप में देना होगा। न्यूनतम राशि आयकर के रूप में चुकाने के प्रावधान पूर्णतया विधि सम्मत हैं, उसके पीछे मुख्य सोच यही है कि पहले बड़ी कंपनियां शुद्ध लाभ को खाते में इधर उधर दर्शाकर आयकर का भुगतान करने से बच जाती थी, जिससे बड़ी राजस्व हानि हो रही थी। इसी कारण आयकर अधिनियम की धारा ११५ जे बी के तहत न्यूनतम आयकर देना आवश्यक किया गया। रस्तोगी ने कहा कि केन्द्र सरकार को कर सम्बन्धी मामले में नीति बनाने और संसद को अधिनियम में संशोधन करने का अधिकार है।
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