मूलरुप से झुुंझुनूं जिले के खिरोड़ में जन्मे डॉ दशरथ सिंह बताते हैं कि बचपन में उनके परिवार की स्थिति ठीक नहीं थे। वे गांव से 13 किमी दूर सब्जियां बचने जाते थे। कष्टमय जीवन और परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर भी उन्होंने पढाई जारी रखी। वर्ष 1988 में वे भारतीय सेना में भर्ती हो गए। उस वक्त बीकॉम की पढ़ाई कर रहे है। नौकरी लगने के बाद से अब तक इनका पढऩे का जुनून बरकरार है। सेना में कहीं भी पोस्टेड रहे वहां भी पढ़ते ही रहे। अभी भी इनकी पढाई जा रही है। वहीं पढ़ते रहे। वर्तमान में शेखावत सेना में बतौर कानून सलाहकार के रुप में सेवाएं दे रहे है। इससे पहले यह सेना से रिटायर्ड हो चुके हंै और अब दोबारा सेना में शामिल हुए।
कारगिल युद्ध के कारण नहीं पढ़ पाए
यह बताते हैं कि पांच वर्ष की आयु में स्कूल में दाखिल हुए। उसके बाद से निरंतर पढ रहे हैं और परीक्षाएं दे रहे है। महज दो वर्ष एक तो भर्ती के दौरान एक वर्ष ट्रेनिंग और दूसरी बार कारगिल युद्ध के दौरान पढ़ाई नहीं कर पाए। जिससे परीक्षा नहीं दे पाए। उसके बाद से निरंतर है। इनका कहना है कि अभी तक वे 2 हजार से ज्यादा परीक्षाएं दे चुके है। उन्हें दो मानद उपाधि से भी नवाजा गया हैं।
बन चुके मोस्ट क्वालीफाइड सोल्जर ऑफ द कंट्री
इनकी 36 डिग्रियों को इंटरनेशनल बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में शामिल किया जा चुका है। जिससे इनका रेकॉर्ड मोस्ट एजुकेशनली क्वालीफाइड पर्सन ऑफ द वर्ल्ड के नाम से बना। इससे पहले वर्ष 2016 में 19 एकेडमिक डिग्री के साथ इंडिया बुक ऑफ रेकॉर्ड में इनका नाम बतौर मोस्ट क्वालीफाइड सोल्जर ऑफ द कंट्री दर्ज हो चुका है।
ये डिग्रियां शामिल
यह अब तक 2 विषयों में पीएचडी, 2 मानद उपाधि, 18 विषय में मास्टर्स, 7 विषय में पीजी, 8 विषय में स्नातक, 7 डिग्री सैन्य सेवा, 13 डिग्री कानून विषय में, 17 डिप्लोमा व कई अन्य महत्वपूर्ण विषय में डिग्री और डिप्लोमा समेत कुल 68 डिग्री, डिप्लोमा व सर्टिफिकेट हासिल कर चुके है।
नई चीज समझने और जानने में रूचि, पढ़ते रहे
युवाओं को सीख देते हुए डॉ दशरथ कहते हैं कि युवाओं को पढ़ाई में नंबर कम आने या लक्ष्य के उपरांत अवसर न मिलने से निराश नहीं होना चाहिए। पढ़ते रहे सीखते। मुझे नई चीज जानने समझने की रूचि थी। यहीं वजह आज में पढ़ रहा हूं। छोटे बच्चों के साथ परीक्षाएं देता हूं। मुझे कोई दिक्कत नहीं होती। क्योंकि मेरा विजन क्लीयर है। आप भी रखें और आगे बढ़े। मुसीबतों में निराश न हों।