कोटा में ही सबसे पहले एक नाट्य कार्यशाला में भाग लिया तब ऐसी सुखद अनुभूति हुई कि फिर कभी पीछे देखने की जरुरत नहीं हुई। घर में कला का माहौल था उसी वातावरण में पला- बढ़ा था तो इससे जुड़ने में मुझे और मजा आया। फिर कुछ दिनों बाद ‘स्पिक मैके’ संस्था से जुड़ा और वहीं से मैं जाने माने रंगकर्मी हबीब तनवीर के साथ जुड़ा। उनके मार्गदर्शन में बहुत कुछ सीखने को मिला। वहाँ जो मेरे नज़रिये में बदलाव, जो आत्मउत्थान हुआ वो जीवन बदल देने वाला था। उनके साथ रहते हुए मैंने तय कर लिया था कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं करना हैं। स्नातक करने के बाद राजस्थान विश्वविधालय से नाट्यकला में डिप्लोमा किया। मगर जिस तरह का काम सीखना चाहता था वो नहीं सीख पाया। अंततः मैंने एनएसडी की ओर रुख किया।
हबीब तनवीर जी के साथ रहने से मुझे अपने पूर्वाग्रहों से निजात पाने में सफलता मिली। उनके सानिध्य में उस मानसिकता से मुक्ति मिली जो इंसान को जात , वर्ण, धरम, समुदाय, गरीब -अमीर में विभाजित कर देती हैं। उन्हीं की प्रेरणा से मैंने कैदियों अनाथों तबकों निःशक्तजनों, वरिष्ठ नागरिकों तथा समाज के पतित तबकों के साथ काम किया। हमारे प्रान्त की सहरिया और अन्य पिछड़ी जातियों के साथ काम करने से जो आत्म संतुष्टि मिली है वो अवर्णनीय हैं।
पैराफिन ग्रुप सिर्फ एक थियेटर संस्था नहीं हैं ये एक जीवन पद्धति है। कलाकार बनने से पहले यहां पहले एक इंसान बनना सिखाया जाता है कला तो बहुत बाद में आती हैं। यहां एक निश्चित दिनचर्या होती है और आपको उसी के अनुसार चलना पड़ता है और इस दिनचर्या में अभिनय से लेकर शारीरिक श्रम तक सब कुछ शामिल रहता है गुरु और शिष्य की परम्परा का ग्रुप में बहुत ज़्यादा महत्व हैं। साथ ही यह बताना कि थियेटर सिर्फ अभिनय तक ही सीमित नहीं है। इसमें नृत्य कला और संगीत कला का भी उतनी ही प्रमुख स्थान हैं जितना अभिनय का हैं। ये एक खाने की रेसिपी जैसा है जिसमे सभी मसालो का सही अनुपात में इस्तेमाल होना ज़रूरी है। अगर एक भी मसाला कम या ज़्यादा होता हैं तो खाने का ज़ायका बिगड़ जाता हैं। मैं थिएटर से प्यार करता हुँ इस का प्रचार-प्रसार करना मेरा मुख्य उद्देश्य है। मेरे नाटकों का प्राथमिक उद्देश्य समाज सेवा या कल्चर का प्रचार करने का नहीं हैं। ना ही किसी तरह का सन्देश देने का है लेकिन कोई सकारात्मक सन्देश जाता है तो अच्छी बात है।
आप भले किसी क्षेत्र को चुनो। चाहे वो सिनेमा, थियेटर, म्यूजिक, पेंटिंग, एडिटिंग, फोटोग्राफी, एक्टिंग, डांसिंग कुछ भी हो। सबसे पहले ये तय करो कि आपके लिए सफलता के मायने क्या हैं? अगर आपने यह तय कर लिया तो आप आने वाली आधी समस्याओं को ख़त्म कर चुके हैं। उसके बाद बिना किसी भटकाव के अपने लक्ष्य से नज़र नहीं हटाते हुए जिस जूनून और लगन के साथ अपना सफर शुरू करते है उसी प्रबलता के साथ तब तक अपनी कला पर काम करते रहे । जब तक की आपका लक्ष्य पूरा न हो जाये।दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं हैं जिसमे अड़चने नहीं आती हैं मगर आप बिना विचलित हुए अपनी यात्रा ज़ारी रखें।
ये एक व्यक्तिगत निर्णय था । मुझे लगा कि मेरे काम में अनुदान का हस्तक्षेप ज़्यादा होने लगा तो मैंने उससे दूर होना ही मुनासिब समझा । क्योंकि जब मैंने अपना काम शुरू किया था तब अनुदान के बारे में नहीं सोचा था । उस वक्त सिर्फ अपनी कला को ज़ेहन में रखकर शुरुआत की थी। मुझे अनुदान मिला मेरे काम को देखकर ,अब अगर वही अनुदान मेरे काम में बाधा डालें तो मैं ये स्वीकार नहीं कर सकता। मैं भी ये नहीं कहता की अनुदान मत लो। अनुदान तब तक लो जब तक वो आपकी रचनात्मकता में वो रुकावट पैदा नहीं करे। आपको कई बार ऐसे फैसले लेने पड़ते है जहां रचनात्मकता और अनुदान में से एक को चुनना पड़ता हैं।
मेरी कोई विरासत नहीं है। मैं खुद अभी सीख रहा हूं , जो भी काम करता हूं उसी को अपना अंतिम कार्य मानते हुए पूरे दिल से करता हूं और उसी में आननद लेता हूं।
देखिये मेरा कोई ख़ास सपना नहीं हैं बस चाहता हूं कि जिस तरह अच्छी थिएटर तालीम के लिए मुझे बिना वजह कई साल भटकना पड़ा था उस तरह हमारे प्रतिभाशाली कलाकारों को नहीं भटकना पड़े। उन्हें एक अच्छा मंच प्रदान करना चाहता हूं। नाटक करते वक्त मेरा ध्यान उसके प्रारूप और उसके कंटेंट पर होता हैं। नया और अच्छा काम करते रहना चाहता हूं । जहां तक कल्चर की बात हैं मुझे नहीं लगता कि मैं राजस्थान के कल्चर को नयी उचाईयों पर ले जाने के लिए सही व्यक्ति हूं। हमारा कल्चर पहले से ही महान है और सारे विश्व में विख्यात हैं। वो पहले से ही बहुत ऊंचाइयों पर हैं।
देखिए थोड़े शब्दों में कहूं तो मुझे लगता है कि कल्चर मर नहीं, बल्कि बदल रहा हैं परिवर्तन प्रकृति का नियम है जो कल था वो कल नहीं होगा। एक वक्त के बाद चीज़ें धीरे -धीरे अदृश्य हो जाती है उनका रंग फीका पड़ने लगता है कल्चर बदल रहा हैं। किसकी वजह से ? हमारे खुद की वजह से, क्यूंकि हम खुद बदल रहे है।
दूरी बनाये रखने के पीछे कोई विशेष कारण नहीं हैं पर समारोह और साक्षात्कार की जगह मैं अपने काम को प्राथमिकता देना पसंद करता हूं। जैसे मैंने पहले कहा कि पुरुस्कार अनुदान जैसी चीजों के लिए मैं इस क्षेत्र में नहीं आया। मुझे अपनी कला से प्रेम था और उसी की वजह से में यहां हूं और उसी को ज़ारी रखूंगा।