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जयपुर

अब फसल अवशेष भी आएंगे किसानों के काम

फसल अवशेष और कचरे से बन रही खादकिसानों को दिया जा रहा है प्रशिक्षण

जयपुरJul 04, 2020 / 04:12 pm

Rakhi Hajela

अब फसल अवशेष भी आएंगे किसानों के काम

अब फसल अवशेष भी आएंगे किसानों के काम


फसल की कटाई के बाद अगली फसल की जल्दी बुवाई के लिए किसान पराली को खेत में ही जला देते हैं। जिससे प्रदूषण बढ़ता है। एेसे में अब वेस्ट डीकम्पोजर का प्रयोग कर किसान फसल अवशेष से छुटकारा पा सकते हैं, साथ ही उन्हें बढि़या जैविक खाद भी मिल सकती है। रिलायंस फाउंडेशन की ओर से जयपुर सहित प्रदेश के चार जिलों सवाई माधोपुर, बूंदी और बांसवाड़ा में विकास कार्य कर रही है। किसानों को वेस्ट डीकम्पोजर का उपयोग कर खाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। जयपुर में जमावारामगढ़, आमेर और झोटवाड़ा ब्लॉक के किसानों को इस तकनीक का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यहां किसानों को कोरोना वायरस के चलते ऑनलाइन प्रशिक्षण करवाया गया। जानकारी के मुताबिक फाउंडेशन की ओर से किसानों को कृषि की नवीन तकनीक की जानकारी प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। इन कार्यो में कृषि विकास, भूमि और जल संरक्षण के साथ ही मार्केट लिंकेज अहम है। जिससे किसान फसल की पैदावार बढ़ा सके।
किसानों को दिया प्रशिक्षण
बूंदी जिले के जजावर कस्बे सहित आसपास के क्षेत्र में फसल अवशेष और कचरे से खाद बनाने के लिए वेस्ट डीकम्पोजर तकनीक का उपयोग करने की तकनीक किसानों को बताई गई। शुरुआती चरण में कस्बे के किसान शोजी लाल नागर के खेत पर वेस्ट डीकम्पोजर ट्रेनिंग करवाई गई। जिसमें बड़ी संख्या में किसान शामिल हुए।
क्या है वेस्ट डीकम्पोजर
आपको बता दें कि वेस्ट डीकम्पोजर को राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र, गाजियाबाद ने विकसित किया है। वेस्ट डीकम्पोजर को गाय के गोबर से खोजा गया है। इसमें सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो फसल अवशेष, गोबर, जैव कचरे को खाते हैं और तेजी से बढ़ोतरी करते हैं, जिससे जहां ये डाले जाते हैं एक श्रृंखला तैयार हो जाती है, जो कुछ ही दिनों में गोबर और कचरे को सड़ाकर खाद बना देती है। इसकी खास बात है इसकी एक शीशी ही पूरे गांव के किसानों की समस्याओं का समाधान कर सकती है। इससे न सिर्फ तेजी से खाद बनती है, जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है, बल्कि कई मिट्टी जमीन बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है।
ऐसे करें इस्तेमाल
फसल की कटाई से पहले 200 लीटर वेस्ट डी कम्पोसर सॉल्यूशन को प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद फसल कटाई के बाद रोटावेटर की सहायता से फसल को मिट्टी में मिला दें। इसके बाद 20 से 25 दिनों के बाद फसल अवशेष बिना किसी समस्या के खेत में मिल जाता है।
यह जैविक खाद एक छोटी शीशी में होता है। 200 लीटर पानी में दो किलो गुड़ डालकर इस विशेष जैविक खाद को उसमें मिला दिया जाता है। इस 200 लीटर घोल में से एक बाल्टी घोल को फिर 200 लीटर पानी में मिलाना होता है। रिलायंस फाउंडेशन के प्रोजेक्ट मैनेजर मनीष शर्मा व कृषि पर्यवेक्षक नरेंद्र कुमार जैन बताते हैं कि किसान इस तरह यह घोल बनाते रहें। खेत की सिंचाई करते समय पानी में इस घोल को डालते रहें। ड्रिप सिंचाई के साथ इस घोल का प्रयोग कर सकते हैं, जिससे यह पूरे खेत में यह फैल जाएगा।
इनका कहना है,
जयपुर के साथ ही हम प्रदेश के कई अन्य जिलों में भी काम कर रहे हैं। जयपुर में जमवारामगढ़, आमेर और झोटवाड़ा के किसानों को प्रशिक्षित किया गया है। फाउंडेशन २०११ से सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है।
फूलचंद कुमावत, सस्टेनेबल एग्रीकल्चर एक्सपर्ट
रिलायंस फाउंडेशन, जयपुर
हाल ही में हमने बूंदी जिले के किसानों को वेस्ट डीकम्पोजर का प्रयोग कर खाद बनाने का तरीके का प्रशिक्षण दिया है। इस तरीके को राष्ट्रीय जैविक खेती केन्द्र, गाजियाबाद ने विकसित किया है। यह किसानों के लिए बेहद उपयोगी और फायदेमंद है।
मनीष शर्मा, प्रोजेक्ट मैनेजर
रिलायंस फाउंडेशन, बूंदी

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