उन्होंने कहा कि यह स्थिति तो तब है जब 2015 में शांता कुमार समिति के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य से लाभान्वित होने वाली संख्या मात्रा 6 प्रतिशत है, यानि 94 प्रतिशत किसान इस योजना से बाहर अपनी उपज खुले बाजार में बेचने को मजबूर है, फिर भी केन्द्रीय मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय दरों के मुकाबले न्यूनतम समर्थन मूल्यों को अधिक बताया है और इससे देश में आर्थिक संकट उत्पन्न होने की बात कही है। सरकार को इस विषय पर श्वेत पत्र लाकर सत्यता जनता के सामने रखनी चाहिए, लेकिन सरकार गोलमोल वक्तव्य देकर किसानों को उनकी उपजों के “न्यूनतम” मूल्य भी नहीं देना चाहती।
जाट ने बताया कि दो वर्ष पहले देश के दलहन उत्पादकों को सरकार उनका लागत मूल्य भी देने को तैयार नहीं थी। मूंग की उपज 54 रुपए प्रति किलो में भी सरकार ने कुल उत्पादन में से 20 प्रतिशत से कम खरीद की थी। सरकार ने उसी समय विदेशों से 1 किलो दाल 104 रुपए चुकाकर आयात की। सरकार एक राष्ट्र एक बाजार की आड़ में किसानों के 22 उपजों के घोषित होने वाले न्यूनतम समर्थन मूल्यों को बन्द करना चाहती है इस वक्तव्य से एक राष्ट्र एक बाजार की वास्तविकता सामने आकर सरकार की परते खुलने लगी है।