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जयपुर

बंदी को पैरोल पर छोडऩे का मकसद सामाजिक संपर्क में रखना

हाईकोर्ट (Rajasthan highcourt) ने कहा है कि बंदियों (jail inmates) को पैरोल(Parole) पर छोडऩे का मकसद बंदी को सामाजिक संपर्क (social contact) में रखने का है ताकि सजा पूरी होने पर वह समाज की मुख्यधारा (mainstream of society) सुधरे (reformed) हुए नागरिक के तौर पर शामिल हो सके।

जयपुरOct 09, 2019 / 09:06 pm

Mukesh Sharma

जयपुर

हालांकि किसी भी प्रकार की आशंका होने पर कुछ शर्तें लगाई जा सकती हैं। कोर्ट ने हत्या के आरोप मंे आजीवन कारावास की सजा भुगत रही महिला बंदी गीता देवी को २० दिन के पैरोल पर रिहा करने के निर्देश दिए हैं। याचिकाकर्ता का कहना था कि पैरोल एडवाईजरी कमेटी ने याचिकाकर्ता की पहली पैरोल अर्जी ससुराल जाने पर जान को खतरा बताते हुए अस्वीकार कर दी थी। कमेटी ने दूसरी अर्जी भी स्वीकार नहीं की और मशीनी अंदाज में खारिज कर दी थी। याचिकाकर्ता ने कोर्ट केा बताया कि वह पैरोल पर रिहा होने के बाद अपने ससुराल से तीस किलोमीटर दूर अपनी मां के पास रहेगी।
कोर्ट ने कोर्ट ने याचिकाकार्ता को जेल अधीक्षक के समक्ष को ५० हजार रुपए का व्यक्तिगत बांड और २५-२५ हजार रुपए की दो जमानत पेश करने को कहा है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को संबंधित पुलिस थाने में हर तीसरे दिन रिपोर्ट करने,पैरोल के २० दिन पूरे होते ही तत्काल सरेंडर करने और जान को किसी प्रकार का खतरा होने पर दांतारामगढ़ थाने के थानाधिकारी को सुरक्षा देने का आग्रह करने को कहा है। कोर्ट ने जयपुर महिला जेल के अधीक्षक को याचिकाकर्ता पर जरुरी होने पर अन्य शर्त भी लगाने की छूट दी है।

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