इसके अनुसार हर जिले में उद्योगों की विभिन्न श्रेणियों के लिहाज से सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खोले जाने की योजना है। हर सेंटर पर कम्पनी ने 100 से 150 करोड़ रुपए के निवेश का प्रस्ताव दिया है, जिसमें 80 प्रतिशत भागीदारी कम्पनी की होगी एवं शेष 20 प्रतिशत हिस्सेदारी सरकार वहन करेगी। इन केन्द्रों से विभिन्न श्रेणी के उद्योगों के लिए प्रदेश में हर साल 45 हजार कुशल कामगर तैयार होंगे।
प्रस्ताव को लेकर कम्पनी के साथ उद्योग विभाग एवं अन्य संबंधित विभागों के उच्चाधिकारियों की बैठक हो चुकी, जिसमें सरकार ने सैद्धांतिक तौर पर माना है कि यह प्रस्ताव प्रदेश के हित में है। हालांकि सरकार ने इनमें और अधिक अध्ययन की आवश्यकता जताई है। परियोजना में दसां के साथ डायमेक कॉम्पिटेंसी भी साझेदार है।
भविष्य के निवेश को मजबूती सूत्रों के अनुसार इस प्रस्ताव के जरिए सरकार कोरोना के बाद प्रदेश में संभावित तेज औद्योगिक विकास के नजरिए से भी देख रही है। इस योजना का सर्वाधिक फायदा दिल्ली-मुम्बई औद्योगिक कॉरिडोर के तहत नए विकसित हो रहे जोधपुर और अलवर के नए औद्योगिक क्लस्टरों को मिलेगा। इन क्लस्टर में 52 नए उद्योग नगर प्रस्तावित हैं, जहां डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के दोनों ओर 150 किलोमीटर के दायरे में नए निवेश राजस्थान आने हैं।
पीपीपी एवं सीएसआर पर मंथन
कोरोना काल में जहां सरकार के आर्थिक संसाधनों में कमी आई है, वहीं इस प्रस्ताव को लेकर अब उच्च स्तर पर अलग योजना भी चल रही है। सरकार राज्य की भागीदारी को लेकर इस योजना को सार्वजनिक निजी भागीदारी या सीएसआर के जरिए खर्च का रास्ता भी देख रही है। इस बारे में उद्योग विभाग के अधिकारियों को विकल्प तलाशने का जिम्मा दिया गया है।
ये होंगे कौशल संवद्र्धन के क्षेत्र
कम्पनियों से बातचीत के बाद सरकार ने जिन क्षेत्रों को उपयुक्त माना है उनमें ऑटोमोटिव, औद्योगिक इंजीनियरिंग, विनिर्माण, टैक्सटाइल, इंडस्ट्री 4.0, पेट्रोलियम और पेट्रोकेमिकल, फार्मास्टियुकल और सोलर मॉड्यूल शामिल हैं।
कम्पनी ने मांगी 25 हजार फीट जमीन और हिस्सेदारी प्रस्ताव देने वाली कम्पनियों ने हर केन्द्र के लिए सरकार के समक्ष अपेक्षा जताई हैं। कम्पनी ने कहा है कि सरकार हर केन्द्र के लिए 25 हजार वर्ग फीट जमीन और अपेक्षित वित्तीय हिस्सेदारी दे। इसके अलावा जिलेवार औद्योगिक संभावनाओं वाले क्षेत्रों की जानकारी और अकुशल कामगर मुहैया कराए तो वह परियोजना के लिए तैयार हैं।