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जयपुर

Rajasthan Assembly Election 2018: दिलचस्प होगा मुकाबला, अंदरूनी झगड़ों से परेशान दोनों दल, हर ज़िले में असंतोष

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जयपुरSep 02, 2018 / 02:01 pm

Nakul Devarshi

rajasthan assembly election 2018
शादाब अहमद, जयपुर।

संगठन पर कब्जा जमाने से शुरू हुई भाजपा-कांग्रेस नेताओं की अंदरूनी लड़ाई विधानसभा चुनाव में टिकट पाने के लिए अब सडक़ पर आती दिख रही है। इससे न केवल जयपुर बल्कि संभाग का हर जिला प्रभावित है। भाजपा के विधानसभा-2013 और लोकसभा-2014 के चुनाव में बड़ी जीत दर्ज करने के बाद नेताओं में संगठन और सत्ता को लेकर लगातार खींचतान बढ़ती चली गई। चुनाव सिर पर है, ऐसे में अब टिकट के लिए नेता आपस में झगड़ते दिख रहे हैं।
जयपुर: सडक़ पर विवाद तो कहीं असंतोष
ब्लॉक अध्यक्ष, पीसीसी सदस्य नियुक्ति से शुरू हुआ झगड़ा टिकट के लिए सडक़ पर आ गया है। पिछले दिनों किशनपोल, सिविल लाइंस विधानसभा क्षेत्रों पर तो मेरा बूथ मेरा गौरव कार्यक्रम के दौरान खुला विवाद हो चुका है। पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल और किशनपोल से पूर्व कांग्रेस प्रत्याशी अमीन कागजी के बीच न्यू गेट पर प्रदर्शन के दौरान विवाद हुआ।
विधायक नरपत सिंह राजवी व शहर जिलाध्यक्ष संजय जैन का झगड़ा सडक़ पर है। किशनपोल से टिकट को लेकर जैन की विधायक मोहनलाल गुप्ता से भी दूरी बढ़ रही है। शहर से एक कैबिनेट मंत्री की भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे एक नेता से तो दूसरे मंत्री की महापौर से रिश्ते ठीक नहीं हैं। देहात जिलाध्यक्ष डीडी कुमावत और विधायक निर्मल कुमावत एक दूसरे की शिकायत करते रहते हैं।
दौसा: किरोड़ी के प्रवेश से उठापटक
संगठन में कोई खास विवाद नहीं है, लेकिन असली झगड़ा टिकट को लेकर शुरू हो चुका है। सिकराय सीट पर कांग्रेस में बवाल बढ़ता जा रहा है। यहां से पूर्व संसदीय सचिव ममता भूपेश टिकट मांग रही हैं। उनके खिलाफ रहने वाले अन्य नेता एकजुट होते जा रहे हैं।
किरोड़ीलाल मीणा के भाजपा में आने के बाद जिले के राजनीतिक समीकरण बदल गए। भाजपा में काफी उठापटक देखने को मिल रही है। यही वजह है कि महुवा से विधायक और संसदीय सचिव ओमप्रकाश हुडला से मीणा की अब तक पटरी नहीं बैठ सकी है।
अलवर: यहां सबक नहीं, वहां बदला माहौल
लोकसभा उपचुनाव में कर्णसिंह यादव की 1.9६ लाख वोटों की जीत के बाद कांग्रेस में सब एक मंच पर आ गए हैं। यहां कांग्रेस नेताओं के बीच मतभेद जरूर हैं, लेकिन उपचुनाव के बाद सब एकजुट दिखाई दे रहे हैं।
हाल में हुए लोकसभा उपचुनाव में करारी हार के बावजूद भाजपा नेताओं ने सबक हासिल नहीं किया है। जिलेभर में भाजपा बिखरी पड़ी है और बड़े नेता एक जाजम पर आने को तैयार नहीं हैं।
सीकर: अलग-अलग राह, तो वहां खेमेबाजी
यहां दो बड़े खेमे बन गए हैं। एक में अधिकांश बुजुर्ग और पुराने नेता तो दूसरे में उभरते हुए नए चेहरे। एक बुजुर्ग नेता बेटे को जिलाध्यक्ष नहीं बनवा पाए, लेकिन अपने समर्थक को इस पद पर बिठाकर प्रतिद्वंदी गुट को मात जरूर दे दी।
जिले से वैसे तो चिकित्सा राज्य मंत्री बंशीधर खंडेला और सैनिक कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष प्रेम सिंह बाजौर हैं। यहां पर भी संगठन पर कब्जे को लेकर खींचतान है। जिलाध्यक्ष मनोज सिंह और बाजौर का गुट अलग-अलग राह पर चलता दिखता है।
झुंझुनूं: भाजपा से ज्यादा कांग्रेस नेताओं में होड़
अपना वर्चस्व कायम रखने को लेकर भाजपा से अधिक कांग्रेस नेताओं में अधिक होड़ है। यहां वैसे तो कांग्रेस के दिग्गज नेता दिवंगत शीशराम ओला का दबदबा रहा है। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र बृजेन्द्र ओला ने कमान संभाल रखी है। नवलगढ़ से 2008 में बसपा के टिकट पर चुनाव जीते राजकुमार शर्मा अन्य बसपा विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। 2013 में ओला के दबाव के चलते उन्हें टिकट नहीं मिला और कांग्रेस छोड़ कर निर्दलीय चुनाव लडऩा पड़ा।

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