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कलराज मिश्र की कलम से: CM के लिए वाजपेयी का नाम चला, तब मैंने कल्याण सिंह का नाम प्रस्तावित किया था

राजनीति में दृढ़ निश्चय और संकल्प रख कार्य करने वाले और रिश्तों की गरिमा निभाने वाले कल्याण सिंह जैसे व्यक्तित्व अब विरल प्राय: हैं। मेरा सौभाग्य रहा है कि आरंभ से ही आत्मीयता के साथ छोटे भाई सा स्नेह मुझे दिया।

जयपुरAug 22, 2021 / 10:44 am

santosh

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जयपुर/पत्रिका। राजनीति में दृढ़ निश्चय और संकल्प रख कार्य करने वाले और रिश्तों की गरिमा निभाने वाले कल्याण सिंह जैसे व्यक्तित्व अब विरल प्राय: हैं। मेरा सौभाग्य रहा है कि आरंभ से ही आत्मीयता के साथ छोटे भाई सा स्नेह मुझे दिया। एक दौर में उत्तरप्रदेश में यह कहा जाने लगा था कि कल्याण सिंह-कलराज मिश्र की जोड़ी जब तक रहेगी, तब तक भाजपा की स्थिति कभी खराब नहीं हो सकती। मुख्यमंत्री रहते वह सार्वजनिक सभाएं करते और प्रदेश अध्यक्ष के रूप में मंडल और ब्लॉक स्तर की सभाएं मैं करता। बीच के वर्षों में जब वह पार्टी से बाहर थे, तब भी उनसे पूर्वत संबंध बने रहे।

एक समय था, कल्याण सिंह अक्सर लोगों से कहा करते थे कि कलराज रहेगा तभी तो कल्याण होगा। किसी से संबंध खराब हो भी जाए तो कटूता नहीं पालते थे। भाजपा की स्थापना के समय से ही हम आपस में अटूट रूप में जुड़ गए थे। 1991 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जब मुरली मनोहर जोशी थे तब यह प्रश्न उठा था कि उत्तरप्रदेश में मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। मैं तब वहां पार्टी अध्यक्ष पद संभाल रहा था। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए अचानक अटल बिहारी वाजपेयी का नाम चला। मैंने तब आग्रहपूर्वक प्रस्तावित किया था कि वाजपेयी के अंदर मैं भविष्य का प्रधानमंत्री पद देखता हूं। उत्तरप्रदेश में कल्याण सिंह का बड़ा आधार बन सकता है। इसलिए उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाए। बाद में ऐसा हुआ भी। कल्याण सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने और वाजपेयी बाद में देश के प्रधानमंत्री बने।

सीएम रहते उन्होंने किसान और गरीब को ध्यान में रखकर नीतियां बनाई। मुझे याद है, उत्तरप्रदेश में उस समय परीक्षाओं में नकल आम बात हो गई थी। बोर्ड परीक्षाओं में नकल के लिए पूरा प्रदेश कुख्यात हो गया था। कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री रहते नकल अध्यादेश लाने की पहल की। उनके समय में उत्तरप्रदेश अपराधविहीन हो गया था। वे जाति और मजहब के नाम पर राजनीति करने के खिलाफ थे। मुख्यमंत्री के रूप में कल्याण सिंह ने प्रत्येक स्तर पर समन्वय समिति बना रखी थी।

इसमें हर दो माह में वह बैठकें करते थे। इन बैठकों में मुख्यमंत्री के रूप में वह स्वयं और बतौर प्रदेश अध्यक्ष मैं शामिल होता था। रामजन्म भूमि आंदोलन के समय अयोध्या में सारे कारसेवकों ने एकत्र होकर ढांचा गिरा दिया था। ऐसे समय में उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। मुख्यमंत्री होने के नाते त्यागपत्र भी दिया। इसके बाद मैं पार्टी अध्यक्ष रहा तो विधानमंडल में प्रतिपक्ष नेता के रूप में हमने फिर से साथ काम किया। उनका नहीं होना, सदा सालता रहेगा। एक बड़े भाई के रूप में उन्होंने जो प्यार मुझे दिया, वह कभी भुला नहीं सकूंगा।

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