बिल में ये बदलाव कर सकती है सरकार… तो वहीं मिली जानकारी के मुताबिक, बिल को वापस लेने के बाद सरकार बिल के अभियोजन स्वीकृति की समय अवधि को 180 दिन से घटाकर 90 दिन करने पर विचार-विमर्श कर रही है। जबकि साथ ही इस बिल के कानून में मीडिया की आजादी पर लगे प्रतिबंध को भी हटाने के बारे में सोच रही है। उधर सरकार के मंत्रियों का कहना है कि इस बिल में जो भी कमियां है, इसे इन दो महीनों में सहमति के साथ दूर कर लिया जाएगा। जबकि ऐसा कहा जा रहा है कि इस बिल में आम लोगों की शिकायतों को लेकर भी गहन विचार किया जाएगा।
बता दें कि मंगलवार को विधानसभा की कार्यवाई सुबह 11 बजे शुरु हुई। जिसके बाद भ्रष्ट लोकसेवकों को बचाने के लिए लाया गया दण्ड प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक-2017 को लेकर चौतरफा हमला झेलने के बाद सरकार ने बिल को प्रवर समिति को सौंप दिया। तो वहीं प्रवर समिति गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया की अध्यक्षता में बनेगी और बिल में संधोशन को लेकर मंथन करेगी। हालांकि विपक्ष फिर भी शांत नहीं हुआ और विधेयक को काला कानून बताते हुए वापस लेने पर अड़ा रहा। ऐसे में विपक्षी सदस्य वैल में नारेबाजी करते रहे। जिससे प्रश्नकाल भी पूरा नहीं हो सका और सदन की कार्यवाही दोपहर 1 बजे तक स्थगित करना पड़ गया।
बिल को लेकर सरकार ने कहा… अधिकारियों के लिए लाए गए इस रक्षा कवच वाले बिल को लेकर राजे सरकार का कहना है कि कुछ झूठे शिकायतकर्ताओं और ब्लैकमेलर मीडिया के चलते ईमानदार अधिकारियों का काम करना मुश्किल हो गया है। ऐसे में ईमानदार अधिकारियों की छवि खराब न हो इसलिए इस कानून को लाना पड़ा। तो वहीं मीडिया जगत कुछ अधिकारियों को चिहिंत करके खबर चलाती है। इससे ईमानदार छवि के अफसरों को काम करने में परेशानी होती है।
विपक्ष का विरोध… राज्य सरकार द्वारा लाए गए इस विवादित बिल को लेकर विपक्ष ने कड़ा विरोध दर्ज किया। जहां कांग्रेस ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता संशोधन विधेयक-2017 जो कि सरकार लेकर आ रही है वो एक काला कानून है। तो वहीं इस कानून के आने से भ्रष्ट और घूसखोर अधिकारियों के हौसले बुलंद होंगे। इतना ही नहीं यह लोगों की आजादी का हनन वाला बिल है। जिसके बाद आमलोगों को इसके खिलाफ आवाज उठाने में समर्थ नहीं होंगे।
इनका कहना है… यह काला कानून है। प्रवर समिति को भेजना ही पर्याप्त नहीं है। इस विधेयक को सरकार तुरंत वापस ले। – घनश्याम तिवाड़ी, वरिष्ठ विधायक, भाजपा इस बिल को लेकर पहले ही सरकार को और मुख्यमंत्री को पहले चेता दिया था फिर भी यह बिल लाया गया। – भवानी सिंह राजावत, विधायक, भाजपा
गौरतलब है कि प्रदेश सरकार द्वारा अधिकारियों, जजों और लोकसेवकों को बचाने के लिए सदन में कानून का रुप देने के लिए एक बिल पेश किया गया। जिसे लेकर आम लोगों के साथ-साथ विपक्ष और सत्ता पक्ष के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने राजे सरकार का पुरजोर विरोध किया। जबकि पूरे राज्य में इस बिल को लेकर जगह-जगह विरोध-प्रदर्शन हुए। इतना ही पत्रकारों ने बी इस काले कानून का विरोध किया। इन सभी विरोध के बाद घिरती सरकार ने इसे वापस ले लिया। तो वहीं सरकार आगामी राज्य विधानसभा चुनाव में किसी तरह का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। शायद इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि प्रदेश सरकार ने इस बिल पर बिना देर किए इसे वापस ले लिया। जो अब अलगे सत्र में पेश किया जाएगा।