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जयपुर

लाल सलाम के लिए इस बार का चुनाव ‘करो या मरो’ का पैगाम

राजस्थान में आजादी के बाद से राजनीति में पैर जमाने के लिए संघर्ष करते रहे वामपंथी दल राजस्थान की राजनीति में मजबूत जड़े नहीं जमा पाए।

जयपुरNov 13, 2018 / 09:59 pm

Kamlesh Sharma

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जयपुर। राजस्थान में आजादी के बाद से राजनीति में पैर जमाने के लिए संघर्ष करते रहे वामपंथी दल राजस्थान की राजनीति में मजबूत जड़े नहीं जमा पाए। अब वामपंथी दलों के सामने प्रदेश की राजनीति में अस्तित्व बचाए रखने की चुनौती है।
वर्ष 1957 के चुनाव से ही वामपंथी विचारधारा से जुड़ा कोई ना कोई सदस्य राजस्थान की विधानसभा में पहुंचता रहा है लेकिन 1957 के बाद वर्ष 2013 के विधानसभा सभा चुनाव ही ऐसा रहा जिसमेें वामपंथी दलों का कोई उम्मीदवार जीतकर प्रदेश की विधानसभा में नहीं पहुंच पाया।
प्रदेश में आजादी के पहले से ही वामपंथी आंदोलन सक्रिय हुआ और इस आंदोलन ने आदिवासी, दलित, पिछड़े और किसान- मजदूर वर्ग में चेतना उत्पन्न करने मदद की पर चुनावी राजनीति में अपने प्रभाव को वामपंथी दल वोटों और सीटों में बदलने में नाकामयाब रहे। वामपंथी दलों का असर शेखावाटी, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, अलवर, बीकानेर जैसे जिलों में रहा और इनके अधिकांश उम्मीदवार इन्हीं क्षेत्रों से जीतकर लोकसभा और विधानसभा में पहुंचे।
वामपंथी दलों को वर्ष 1957 के विधानसभा चुनाव में 23 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और एक सीट जीतने में कामयाब रहे। वर्ष 1962 के चुनाव में इनका प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा। इस चुनाव में वामपंथी दलों ने 5 सीटे जीते और इनका वोट शेयर 5.40 फीसदी रहा। बाद के चुनावों में ये दल इस प्रदर्शन को दोहराने में नाकाम रहे।
वर्ष 1972 के विधानसभा चुनाव में वामपंथी दलों ने 4 सीटे जीती पर इस चुनाव में उन्हें कांग्रेस का समर्थन मिला हुआ था। वामपंथी दलों में अब सीपीएम सबसे प्रभावी दल है हालांकि 80 के दशक तक सीपीआई प्रभावी थी। 90 के दशक के बाद वामपंथी दलों में सीपीएम प्रभावी होती चली गई और सीपीआई कमजोर हो गई।
प्रदेश की राजनीति में नहीं जमा पाने के पीछे एक कारण प्रदेश में इन दलों वामपंथी राजनीति का विचारधारा की बजाए व्यक्ति आधारित होना भी माना जाता है। इससे उस व्यक्ति के राजनीति में सक्रिय नहीं रहने के साथ ही उस क्षेत्र में दल कमजोर हो जाता है।
प्रदेश में वामपंथी राजनीति रामानंद अग्रवाल, प्रो. केदार, श्योपत सिंह मक्कासर और बाद में अमराराम के इर्द- गिर्द ही घूमती रही है। वामपंथी दलों का प्रभाव क्षेत्र भी धीरे-धीरे सीमित होता गया।

अब ये दल श्रीगंगानगर और सीकर जिलों में अधिक प्रभावी हैं। वर्ष 2008 में जीते 3 विधायक इन्हीं दोनो जिलों से थे। प्रदेश से लोकसभा में पहुंचने वाले वामपंथी दलों के एकमात्र सांसद श्योपत सिंह मक्कासर भी 1989 में श्रीगंगानगर से ही चुने गए थे।

छात्र इकाइयों के खाते में जीत
वामपंथ प्रभाव वाले इलाकों शेखावाटी और सरसब्ज गंगानगर व हनुमानगढ़ में किसानों के बीच इनका अग्रिम संगठन अखिल भारतीय किसान सभा तो विश्वविद्यालय और कॉलेजों में छात्र विंग खासे सक्रिय रहे हैं। बीकानेर, जोधपुर और झुंझुनूं में समय-समय पर वामपंथी पार्टियों की छात्र इकाइयों ने चुनाव में बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन इन जिलों की सीटों पर पार्टियां विशेष नहीं कर पाई।
वर्ष ——- जीते——- वोट (%)
1951——- 0——- 0.53
1957——- 1 ——- 3.02
1962——- 5 ——- 5.40
1967——- 1 ——- 2.15
1972——- 4 ——- 2.52
1977——- 2 ——- 1.86
1980——- 2 ——- 2.17

वर्ष—— जीते— वोट (%)
1985— 1——– 1.81
1990—1——- 1.85
1993—1——- 1.20
1998—1——- 1.02
2003—1——- 0.99
2008—3——- 2.05
2013—0——- 1.25

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