इस गांव का नाम है धनूरी। धनूरी झुंझुनूं से केवल बीस किलोमीटर दूर है। इस गांव के हर घर से एक फौजी है। जब भी मातृभूमि के लिए मर मिटने का जिक्र होते ही सबसे पहले धनूरी का नाम आता है।
गांव के 17 मुस्लिम सपूतों ने मातृभूमि की रक्षा के लिए शहादत दी है। मुस्लिम बाहुल्य इस गांव का नाम देश में सर्वाधिक शहीद देने वाले पहले 3 गांवों में शुमार है। अगर किसी काे मुसलमानों से देशभक्ति का सबूत चाहिए तो वे इस गांव में जा सकते हैं।
पहले विश्व युद्ध में धनूरी के छह और दूसरे विश्व युद्ध में चार जवान देश के लिए शहीद हुए थे। आजादी के बाद भी इस गांव से सात जवान शहीद हो चुके हैं। सन 1962 भारत-चीन के युद्ध में गांव के मोहम्मद इलियास खां, मोहम्मद सफी खां और निजामुद्दीन खां ने देश सेवा के लिए लड़ते-लड़ते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
इनके अलावा भारत-पाकिस्तान की 1971 की लड़ाई में मेजर महमूद हसन खां, जाफर अली खां और कुतबुद्दीन खां देश सेवा के लिए लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। करगिल युद्ध में गांव के मोहम्मद रमजान खां की बहादुरी के चर्चे आज भी होते हैं। धनूरी गांव को यदि फाैजियाें की खान कहा जाए तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी।
आज भी गांव के लोगों में राष्ट्रसेवा का जज्बा कूट कूट कर भरा है। गांव के युवाओं में आज भी सेना में भर्ती होने का जज्बा इस कदर हावी है कि यहां के युवा सुबह साढ़े 4 बजे उठकर दौड़ लगाते हैं। शाम को भी अभ्यास करते हैं। खेलों के जरिए भी खुद को तैयार करते हैं। हर सेना भर्ती में गांव के युवा पहुंचते हैं।
सीआरपीएफ से रिटायर्ड मोहम्मद हसन का कहना है कि गांव के हर घर का नाता
भारतीय सेना से है। गांव के ही गौरव सैनानी अरशद अली कहते हैं कि धनूरी में जन्मे हर व्यक्ति में देश भक्ति का पैदाइशी जज्बा है। खुद उनके परिवार के चार लोग अभी सेना में कार्यरत हैं।