स्वामी गोविंदानंद की अगुवाई में अयोध्या में हजारों सैनिकों का पड़ाव रहा। वहां सात प्रकार का पहरा रहता। जिसके तहत पांच कोस की अयोध्या परिक्रमा मार्ग पर सैनिक घुड़सवार रात दिन चलते। राम जन्मभूमि पर दो हथियार रखने वाले सैनिक तैयार रहते। पूजा पाठ से जुड़े सैनिक राम जन्मभूमि पर पहरा देते। हनुमानगढ़ी और विद्या कुंड में रिजर्व सैनिकों की छावनी रही।
12 घंटे में पहरा बदलता
इस बारे में जयपुर के पौराणिक बालानंद मठ में कई दस्तावेज मौजूद हैं। मठ से जुड़े देवेंद्र भगत के मुताबिक बारह घंटे में पहरा बदलता। अखाड़ों की नागा छावनियों का खर्चा जयपुर रियासत उठाती रही। जयपुर के वकील नंदकिशोर के मार्फत अयोध्या भेजे जाने वाली रकम का ब्यौरा मुगल दरबार को भेजना पड़ता था।
गढ़मुक्तेश्वर, गया और जनकपुर के मठाधीश भीष्म दास महाराज अयोध्या सैनिक छावनी की रिपोर्ट बालानंद महाराज को भेजते थे। सवाई जयसिंह द्वितीय के समय सन् 1718 से 1731 तक एवं बाद में सन् 1735 से 1752 नागा संतों ने अयोध्या में सुरक्षा की कमान संभाली। सवाई जयसिंह ने रामकोट के पास अवध नवाब शहादत खान से भूमि खरीदकर अयोध्या में जयसिंहपुरा बसाया।
मठ से जुड़े गोविंदानंद और रघुनाथ दास की छावनियों को जय सिंह खर्चा भेजते रहे। जयसिंह की मृत्यु के बाद सवाई माधव सिंह प्रथम और सवाई प्रताप सिंह के समय तक अयोध्या की सैनिक छावनियों को जयपुर से रकम भेजी जाती रही। जयपुर के राधा किशन और सेवक राम अयोध्या में रहते थे।
जयपुर के प्रधानमंत्री रहे दौलतराम हल्दिया भी रकम भेजते। अयोध्या के रसूलपुर, सिरसा, फतेहपुर जयपुर की जागीर में रहे। अन्तिम महाराजा के समय अयोध्या की संपति की निगरानी एक अधिकारी रैना ने रखी।