दुर्लभ बीमारियां सबसे ज्यादा बच्चों को प्रभावित करती हैं। 50 प्रतिशत नए मामले बच्चों में सामने आते हैं और एक साल से कम उम्र में 35 प्रतिशत मौत के लिए दुर्लभ बीमारियां जिम्मेदार है।
विशेषज्ञों के अनुसार दो लाख लोगों में से एक व्यक्ति को होने वाली बीमारियों को दुर्लभ बीमारियों की श्रेणी में रखा जाता है। भारत में एक अनुमान के मुताबिक, हर 20 में से 1 भारतीय किसी दुर्लभ बीमारी का शिकार है। जिनमें 50 प्रतिशत बच्चे हैं।
भारत में दुर्लभ बीमारियों की चुनौती लगातार बढ़ती जा रही है। दुर्लभ बीमारियों को लेकर नीति नहीं होना, मरीजों के बीच बीमारी के बारे में जागरूकता कम होना और सही इलाज तक नहीं पहुंच पाना कुछ ऐसे कारण हैं, जो दुर्लभ बीमारियों के मरीजों की जिंदगी को और खतरे में डाल देते हैं।
भारत में सबसे ज्यादा पाई जाने वाली दुर्लभ बीमारियों में हीमोफीलिया, थैलेसेमिया, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर जैसे गौशर डिजीज, फाइब्री डिजीज, हंटर सिंड्रोम और पोम्पेज डिजीज, सिकल सेल, एनीमिया, हीमोफीलिया, क्रोन्स डिजीज, अल्सरेटिव कोलिटिस तथा प्राइमरी इम्यूनो डिफिशिएंसी जैसी बीमारियां शामिल हैं।
राजस्थान में दुर्लभ बीमारियों को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बहुत कम है और यहां कई अस्पतालों में इनकी जांच व इलाज के लिए पर्याप्त व्यवस्था भी नहीं है। जयपुर में एसएमएस हॉस्पिटल और जेके लोन हॉस्पिटल में इन बीमारियों की जांच की सुविधा उपलब्ध है।