मां शाकंभरी के प्राकट्य को लेकर अलग-अलग ग्रंथों में अलग-अलग बातें कहीं गई हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि देवी भागवत महापुराण में शाकंभरी माता को देवी दुर्गा का ही स्वरूप बताया गया है। इसके अनुसार पार्वतीजी ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने अन्न-जल त्याग दिया था तथा जीवित रहने के लिए केवल शाक.सब्जियां ही खाईं। इसलिए उनका नाम शाकंभरी रखा गया।
एक अन्य कथा के अनुसार मां शाकंभरी ने दुर्गमासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इस संबंध में पद्म पुराण में विस्तार से उल्लेख किया गया है। कथा के अनुसार एक बार धरती पर जब अकाल पड़ा तो पूरा अन्न खत्म हो गया। तब देवी शाकंभरी प्रकट हुई और अपनी देह पर शाकसब्जियां उगाकर लोगों की क्षुधा शांत की. इस तरह से सृष्टि को नष्ट होने से बचाया। ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार वनस्पतियों के सिंचाई के लिए देवी ने सौ नैत्रों से बारिश की इसलिए उन्हें शताक्षी भी कहा गया।
पूर्णिमा तिथि 28 जनवरी को देर रात लगभग 1.30 से शुरू हो चुकी है। इस तरह 28 जनवरी को सूर्याेदय से लेकर दिनभर पूर्णिमा तिथि बनी रहेगी. पूर्णिमा तिथि 29 जनवरी की रात 12.45 बजे तक रहेगी। इस बार शाकंभरी पूर्णिमा पर अनेक शुभ संयोग बन रहे हैं। 28 जनवरी को सूर्याेदय के समय गुरु पुष्य योग सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृतसिद्धि योग भी बन रहा है। मां शाकंभरी ने अपनी देह पर वनस्पति उगाकर विश्व का भरण पोषण किया था। इसलिए शाकंभरी जयंति के दिन फल फूल और हरी सब्जियों को दान करने का सबसे ज्यादा महत्व है।