शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व तो है इसी के साथ शारारिक दृष्टि या स्वास्थ्य के लिए विशेष महत्व का दिन है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चांद अपनी सभी 16 कलाओं से भरा होता है, जिस वजह से चांद रात 12 बजे धरती पर अमृत बरसाता है। इसलिए रात को खुले में खीर को रखा जाता है। ताकि अमृत के कण खीर के पात्र में गिरे जिसके फलस्वरूप यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है। जिसको प्रसाद रूप में खाने से व्यक्ति सेहतमंद रहता है।
शरद पूर्णिमा पर स्वास्थ्य के लिए आप खीर का सेवन करना चाहते हैं तो इसका विशेष ध्यान रखें कि खीर चांदी या फिर मिट्टी के बर्तन में ही बनानी है। यदि खीर में चीनी की जगह गुड़िया शक्कर, मिश्री या गुढ़ या बुरा का उपयोग किया जाए तो ज्यादा फायदेमंद होगा और शरद पूर्णिमा की खीर में केसर, इलायची, किशमिश, चिरौंजी के साथ दूसरे सूखे मेवे का उपयोग किया जाना चाहिए। ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा के अनुसार चांदी धातु का संबंध चंद्रमा से है। ऐसे में मिट्टी और चांदी के बर्तन में खीर बनाने और रखने से ज्यादा लाभ मिल सकता है। इसके जरिए आपकी राशि में चंद्रमा का दोष है तो वह सही होगा और साथ ही ऐसी परंपरा भी है कि त्वचा, नेत्र और श्वास रोग के साथ ही ह्दय रोग में इस खीर से लाभ प्राप्त होता है।
राष्ट्रीय आयुवेद संस्थान के प्रोफेसर एवं हैड आफ डिपार्टमेंट डॉ कमलेश कुमार शर्मा के अुनसार शरद पूर्णिमा का चांद सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इसका चांदनी से पित्त, प्यास और दाह संबंधित रोगों में फायदा होता है। केवल शरद पूर्णिमा ही नहीं बल्कि दशहरे से शरद पूर्णिमा तक रोजाना रात में 15 सो 20 मिनट तक चांदनी का सेवन करना चाहिए। यह काफी लाभदायक है। शरद पूर्णिमा की रोशनी में सूई में धागा पिरोने की पंरपरा भी रही है यानि कि चांद की रोशनी का आंखों का सेवन जिससे आंखों की रोशनी बढ़ती है और कई विशेष जड़ी-बूटी और औषधियां इसी दिन चांद की रोशनी में बनाते-पीसते हैं जिससे यह रोगियों को दोगुना फायदा देती हैं। शर्मा के अनुसार शरद पूर्णिमा को चांद की मध्यम सभी कलाओं से युक्त किरणें धरती पर आती है जो इसका महत्व बढ़ा देती हैं।
आयुर्वेदाचार्य सीताराम गुप्ता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी छिपा है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होता है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। इसी के चलते सदियों से ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है।