मार्गशीर्ष पूर्णिमा को ही दत्तात्रेय जयन्ती भी मनाई जाती है। इस माह में श्रीमदभागवत ग्रंथ के दर्शनभर का बहुत महत्व बताया गया है। इस संबंध में स्कन्द पुराण में कहा गया है कि मार्गशीर्ष या अगहन मास में श्रीमदभागवत ग्रंथ को दिन में एक बार प्रणाम करना चाहिए। इस मास में दो अन्य स्तोत्र के पाठ की भी बहुत महिमा बताई गई है।
मार्गशीर्ष मास में विष्णुसहस्त्रनाम और गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्र का पाठ करने से सुख प्राप्त होते हैं और जिंदगी में आनेवाले अवरोध खत्म होते हैं। मार्गशीर्ष मास में शंख बजाने का भी विधान है. इस माह में शंख में पावन जल भरें और घर के पूजास्थल पर रखें विष्णुजी के विग्रह पर मंत्र जाप करते हुए घुमाएं। इस जल को दीवारों पर छीटने से शांति आती है, क्लेश दूर होते हैं।
मार्गशीर्ष माह का एक अनूठा प्रयोग भी है। इस माह के शुक्ल पक्ष द्वादशी को उपवास प्रारम्भ कर एक साल तक प्रति मास की द्वादशी को उपवास रखें। इस दिन भगवान विष्णु के 12 नामों में से प्रत्येक का एक-एक मास तक पूजन करें। विश्वासपूर्वक यह व्रत करने से मोक्ष प्राप्त होता है। खास बात यह है कि इस प्रयोग से पूर्व जन्म की घटनाएं भी याद आने लगती हैं।