हिंदू अल्पसंख्यकों के हितों के लिए एक होकर लड़ने वाले दोनों वर्ग आज चुनाव में न सिर्फ आमने सामने हैं, बल्कि चुनाव अभियान के दौरान इनमें बढ़ी तल्खी एक नए खतरे की ओर संकेत कर रही है। आइए आपको दिखाते हैं एक खास रिपोर्ट-
पाकिस्तान में आज नेशनल एसम्बेली और पांच राज्यों की प्रोविंशियल असेम्बली यानी विधानसभा चुनावों के लिए वोट डाले जा रहे हैं। राजस्थान के सामने वाले इलाके में स्थित पाकिस्तान का सिंध सूबा पाकिस्तान की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाता है और यह सीटों के लिहाज से पड़ोसी मुल्क का दूसरा बड़ा राज्य हैं।
यहां के हिन्दू अल्पसंख्यक मतदाताओं की पिछले सभी चुनावों में अहम भूमिका रही है और यहां से अल्पसंख्यक हितों की बात करने वाले कई बड़े नेता नेशनल असेम्बली में पहुंचे हैं। लेकिन इस बार सिंध के हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय की एकता व भाइचारे को नापाक राजनीति की नजर लग गई है। सिंध की 61 नेशनल असेम्बली सीटों के अलावा विधानसभा की 168 में से कई सीटों पर दलित व उच्च वर्ग के हिन्दू प्रत्याशी आमने सामने हैं।
सिंध के चार जिलों में हिन्दू अल्पसंख्यकों की आबादी निर्णायक भूमिका में है। इनमें से मिट्ठी-थारपारकर जिले में तो हिंदू अल्पसंख्यक मतदाताओं की तादाद 50 फीसदी से ज्यादा है… मीरपुर खास, उमरकोट और सांगड़ जिलों में भी हिन्दू मतदाता लगभग 50 फीसदी हैं और चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं चाहे पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) या फिर भुट्टो परिवार की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी, सभी को इन मतदाताओं का सहारा चाहिए। हिन्दू मतदाता भी एकजुट होकर अपने हित की बात करने वाला प्रतिनिधि चुनते हैं। इनमें कभी दलित-गैर दलित का भाव नहीं दिखा, लेकिन इस बार ऐसा नहीं है। सिंध के हिंदू बहुल इलाकों में दलित ही अन्य हिंदू प्रत्याशियों को चुनौती दे रहे हैं। मिट्ठी, थारपारकर, नगरपारकर आदि इलाकों में पहली बार दलित प्रत्याशी ज्यादा संख्या में सामने उतरे हैं अपनों के ही खिलाफ।
सिंध में दलितों और हिन्दूओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के नाम पर दरार डालने का काम हुआ। इसकी नींव पिछले साल हुई राष्ट्रीय जनगणना के दौरान ही रख दी गई थी। पहली बार जनगणना में पूछा गया था कि आप हिन्दू हैं या दलित ।इसके बाद आबादी के अनुपात में दलितों को पूरी सीटें नहीं मिलने का जहर घोला गया और चुनाव प्रचार में उतरे दलित प्रत्याशियों ने इसे भुनाने की पूरी कोशिश की। थारपारकर के मिट्ठी इलाके से चुनाव मैदान में उतरी दलित तबके की सुनिता परमार ने अपने प्रचार अभियान में जागीरदारों, जिन्हें स्थानीय भाषा में बडेरा यानी बड़ा कहा जाता है, पर खूब निशाने साधे। सिंध के दलित एक्टिविस्ट डॉ. सोनू खिंगरानी इसका कारण बताते हुए कहते हैं कि थारपारकर में ही दलितों की आबादी 33 प्रतिशत है, लेकिन इनका पूरा सियासी प्रतिनिधित्व नहीं है। इस बार भी प्रमुख दलों से जिले के 20 दलितों ने टिकट मांगे…एक भी भी मौका नहीं मिला। लिहाजा लोग निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं। दूसरी ओर हिंदू नेता अपर्याप्त प्रतिनिधित्व की बात को सिरे से खारिज करते हैं। कहते हैं कि जिस समुदाय के तीन नेता प्रोफेसर ज्ञानचंद, खाटूमल और कृष्णा कोली मौजूदा सिनेटर हो.। उसे उपेक्षित कैसे माना जा सकता है । ये विशुद्ध रूप से हिन्दूओं में दरार डालने की कोशिश है। दलितों को बडेरों के खिलाफ भड़काया गया है।
पाकिस्तान की राजनीति के प्रमुख हिंदू नेता रमेश वकवानी इस बार भी मैदान में है, लेकिन दो बार सांसद रहे वकवानी इस बार पीएमएल की बजाय इमरान की पार्टी के उम्मीद्वार हैं। दो बार के सांसद संजय परवानी एमक्यूएम-पाकिस्तान के प्रत्याशी बनकर चुनाव मैदान में हैं तो मिट्ठी से पाकिस्तान के कद्दावर नेता डॉ. महेश मालानी तीसरी मैदान में हैं। इन सभी हिंदू उम्मीद्वारों को दलितों की चुनौती भी मिल रही है। कुल मिलाकर पाकिस्तान हिंदू अल्पसंख्यकों को बांटने की अपनी चाल में सफल होता दिख रहा है। वोट बंटने के साथ हिंदू अल्पसंख्यकों की ताकत घटेगी और इससे दुष्परिणाम की कल्पना ही की जा सकती है।