दरअसल, सवाई मानसिंह अस्पताल में महंगी जांचों को लेकर सख्ती कर दी गई है। इस कारण जरूरतमंद मरीजों को परेशानी से जूझना पड़ रहा है। आचार्य, सहायक आचार्य, रेजिडेंट मरीज की हालत देख तुरंत एमआरआइ, सीटी स्कैन समेत कई जांचें लिख देते हैं। इनमें जिस जांच का शुल्क 2000 रुपए से अधिक होता है उन मरीजों के लिए जांच पर्ची पर यूनिट हेड की सील और हस्ताक्षर की अनिवार्यता लागू कर दी गई है।
भटकने को मजबूर ओपीडी समय में तो यूनिट हेड इधर-उधर मिल जाते हैं लेकिन उसके बाद इन जांचों के लिए मरीज व उनके परिजन को परेशान होना पड़ता है। यूनिट हेड कब और कहां मिलेंगे यह उनके स्टाफ को भी पता नहीं होता। ऐसे में मरीज व परिजन भटकते रहते हैं। नई व्यवस्था से चिकित्सकों में भी रोष है। उनका कहना है कि समय तय किया जाए कि कब, कहां, कौन हस्ताक्षर करेंगे ताकि मरीज परेशान नहीं हों।
तीन दिन बाद हुई जांच भरतपुर से आए एक मरीज के परिजन ने बताया कि उसकी भाभी कार्डियोलोजी विभाग में भर्ती थी। प्राचार्य ने एमआरआइ जांच लिख दी। काउंटर पर गए तो पर्ची पर यूनिट हेड के हस्ताक्षर व सील लगवाने को कहा गया। उस दिन यूनिट हेड नहीं मिले अगले दिन छुट्टी थी। ऐसे में तीसरे दिन यूनिट हेड के हस्ताक्षर हो पाए फिर जांच हुई।नहीं कर पा रहे मदद
चौंकाने वाली बात है कि अस्पताल के उपाधीक्षक, अतिरिक्त अधीक्षक समेत कई प्रशासनिक अधिकारी भी इमरजेंसी में जरूरतमंद मरीजों की मदद नहीं कर पा रहे हैं।