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जयपुर

बोरवेल से जुड़े दिशा-निर्देशों की निकली हवा, प्रदेश में नहीं थम रहे मासूमों की जान लेने वाले हादसे

Borewell Accident in Jodhpur :

जयपुरMay 21, 2019 / 04:54 am

dinesh

borewell
जयपुर।

प्रदेश में बच्चों के बोरवेल ( Borewell Accident in Rajasthan ) में गिरने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। अब जोधपुर के भोपालगढ़ क्षेत्र के खेड़ापा थानान्तर्गत मैलाना गांव की सरहद में एक खेत में मकान के सामने स्थित खुले नलकूप के बोरवेल में चार साल की मासूम बच्ची के गिरने की घटना ने फिर से आमजन और प्रशासन की लापहरवाही पर सवाल खड़े कर दिए है। इस तरह घटना ना हो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिशा निर्देश जारी किए हुए है लेकिन लापहरवाही और अनदेखी ने बार-बार ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया है।
2013 में सर्वोच्च अदालत ने बोरवेल से जुड़े कई दिशा-निर्देशों में सुधार करते हुए नए दिशा-निर्देश जारी किए थे। उसके अनुसार गांवों में बोरवेल की खोदाई सरपंच तथा कृषि विभाग के अधिकारियों की निगरानी में करानी अनिवार्य है। शहरों में यह कार्य ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग तथा नगर निगम के इंजीनियर की देखरेख में होना जरूरी है। इसके अलावा बोरवेल खोदने वाली एजेंसी का रजिस्ट्रेशन होना भी अनिवार्य है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार बोरवेल खोदवाने के कम से कम 15 दिन पहले डी.एम., ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग और नगर निगम को सूचना देना अनिवार्य है। बोरवेल की खोदाई से पहले खोदाई वाली जगह पर चेतावनी बोर्ड लगाया जाना और उसके खतरे के बारे में लोगों को सचेत किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा ऐसी जगह को कंटीले तारों से घेरने और उसके आसपास कंक्रीट की दीवार खड़ी करने के अलावा गड्ढों के मुंह को लोहे के ढक्कन से ढंकना भी अनिवार्य है। लेकिन सरकारी अथवा गैर सरकारी संस्थाओं या व्यक्तियों द्वारा बिना सुरक्षा मानकों का पालन किए गड्ढे खोदना और खोदाई के बाद उन्हें खुला छोड़ देने का सिलसिला आज भी बेरोकटोक जारी है। अपवाद स्वरूप किसी बच्चे को ऐसे हादसे में बचाने में सफलता मिल जाती है तो ‘जिंदगी की जंग’ जीत लेने का जश्न मनाते हुए प्रशासन द्वारा बहादुरी के गीत गाए जाते हैं, अन्यथा ऐसे अधिकांश मामलों में बच्चे मौत से हार जाते हैं और प्रशासन अपनी बेबसी पर आंसू बहाता नजर आता है।

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