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जयपुर

राजस्थान के इस जिले में लगता है तेजा मेला, जानें वीर तेजाजी का पूरा इतिहास

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जयपुरSep 15, 2018 / 05:56 pm

Kamlesh Sharma

jaipur
जयपुर। तेजा दशमी को लेकर लोगों में भारी उत्साह है। भाद्रपद कीशुक्ल पक्ष दशमी को भरने वाले तेजा मेले की तैयारियां जोरों पर है। लोक देवता के निर्वाण दिवस को लेकर यात्रियों के जत्थे उमड़ रहे हैं। नागौर जिले के परबतसर में तेजा दशमी से पूर्णिमा तक विशाल पशु मेले का आयोजन होता है।
तेजा दशमी की तैयारियां जोरों पर

तेजा दशमी को लोग व्रत कर जहरीले कीड़े से सुरक्षा करने की मनोकामना करते हैं। इस तिथी को राजस्थान में कई जगह मेले के आयोजन होते हैं। हाथों में पताकाएं लिए पैदल यात्री तेजाजी के स्थानों पर दर्शनों को पहुंच रहे हैं। बाबा के जयकारों से प्रदेश की धरा गुंजायमान हैं। लोक देवता के रूप में प्रसिद्ध तेजाजी महाराज ने समाज को एक नई दिशा दी। दरअसल, प्रदेश में रामदेवजी, तेजाजी, पाबूजी, गोगाजी और जाम्भोजी को मरुधरा में लोकदेवता के रुप में पूजा जाता है। लोकदेवताओं के जन्मदिन या समाधि की तिथी को मेले के आयोजन होता है। इसके चलते भादवे की दशमी को जैसलमेर के रामदेवरा में बाबा रामदेव और नागौर के परबतसर में वीर तेजाजी का मेला लगता है। इस दौरान हजारों यात्री तेजाजी महाराज व रामदेव बाबा के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। बतादें कि लोक देवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले के खड़नाल गाँव में ताहरजी और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला को जाट परिवार में हुआ था। किशनगढ़ के पास सुरसरा में सर्पदंश से उनकी मौत भाद्रपद शुक्ल दशमी को हो गई थी।
तेजा दशमी के पीछे क्या है मान्यता

ऐसी मान्यता है कि तेजाजी का विवाह उनके माता-पिता ने बचपन में पेमल के साथ कर दिया था। अपनी भाभी के बोलों से अखरे तेजाजी ने ससुराल का पता-ठिकाना पूछकर पत्नी को लाने लीलन घोड़ी से रवाना हो गए। उनकी पत्नी की सहेली लाखा नाम की गूजरी की गायों को चोर जंगल से चुरा ले गए। तेजाजी इसी मार्ग से गुजर रहे थे। लाखा ने उन्हें रोककर गायों को चोरों से छुड़ाकर लाने के लिए कहा। तेजाजी ने लाखा की बात मानकर गायों को चोरों से मुक्त कराने निकल पड़े। रास्ते में सांप ने उन्हें डसने का प्रयास किया तो गायों को चोरों से मुक्त कराकर लाख को संभलाकर वापस सांप के पास आने की प्रार्थना कर डाली। इस पर सांप ने बात मान ली। इसके बाद गायों को छुड़ाने के लिए तेजाजी का चोरों से काफी संघर्ष हुआ। इससे तेजाजी के पूरे शरीर पर गहरे जख्म हो गए। वापस जब सांप के पास घायल तेजाजी महाराज लौटे तो सांप ने डसने से मना कर दिया। इस पर तेजाजी ने सांप को जीभ पर डसने के लिए कहा। सांप के डसने पर तेजाजी महाराज धरती मां की गोद में समा गए । इसके बाद से तेजा दशमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा। वीर तेजाजी को काला और बाला के रुप में भी लोग पूजते हैं। तेजाजी के स्थान पर सांप या जहरीले कीड़े के डसने से हुए घायल को ले जाने पर ठीक हो जाता है।

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