पर्यावरण बचाने की अनूठी पहल, जानकर हर कोई कह उठता है- ‘भई वाह’
जयपुर। पर्यावरण संरक्षण के लिए आज सरकार के साथ कई सामाजिक संगठन की ओर से भी कार्य किया जा रहा है। कई लोग भी पर्यावरण को बचाने के उद्देश्य से कार्य करते नजर आ रहे हैं। कुछ ऐसा ही काम किया है प्रतापगढ़ के युवा दीपेश ने।
बढ़ते प्रदूषण और जनसंख्या के कारण वर्तमान दौर में पर्यावरण को दिन-प्रतिदिन नुकसान होता जा रहा है। इसके लिए विश्व भर में सरकारें अपने-अपने स्तर पर काम भी कर रही हैं। सरकारों के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिए कई सामाजिक संगठन भी इस ओर काम करते नजर आते हैं। इसी के साथ ही कई पर्यावरण प्रेमी भी अपने स्तर पर पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम करते हैं। ऐसे ही एक पर्यावरण प्रेमी हैं दीपेश, जिन्होंने एक अनूठी तकनीक अपना कर चौथाई पानी के प्रयोग से ही पौधों को सींचा।
READ MORE : हिस्ट्रीशीटर सुभाष बराल की कोर्ट में हुई पेशी, चप्पे-चप्पे पर तैनात रहा पुलिस का भारी जाब्तामुक्तिधाम से की शुरुआत, चार साल की मेहनत का नतीजा उन्होंने ना केवल पौधरोपण ही किया बल्कि इन पौधों को परिवार के सदस्य की तरह मानते हुए इनकी देखभाल भी की। उनके चार साल की इस अथक मेहनत का नतीजा आज हरे-भरे पेड़ के रूप में उनके सामने आ चुका है। दीपेश ने पौधरोपण की शुरुआत जैन समाज के मुक्तिधाम से की। चार साल पहले जब उन्होंने वहां पहला पौधा रोपा, तब पूरी जमीन बंजर थी। पूरे मोक्षधाम में छायादार पेड़ के नाम पर केवल दो पेड़ दिखाई देते थे। आज इस परिसर में चारों और छायादार पौधे लहरा रहे हैं।
READ MORE : मनमोहन सिंह को राजस्थान से राज्यसभा में भेजने पर विचार कर रही कांगेसअनूठी तकनीक अपना कर चौथाई पानी के प्रयोग से ही पौधों को सींचा राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे देश और विश्व में जलसंकट सबसे बड़े संकट के तौर पर देखा जा रहा है। इसे देखते हुए दीपेश ने एक तकनीक विकसित की, जिसके चलते उन्होंने चौथाई पानी में उनके लगाए पौधों को आवश्यकतानुसार पानी पहुंचाया। इस तकनीक में वे पौधरोपण के लिए दो फिट का गड्ढा खोदते हैं, फिर इस गड्ढे में आधा फिट तक पत्थर की छोटी गिट्टीयां बिछाते हैं। इसके बाद वे उस गड्ढे में चार इंची प्लास्टिक पाइप लगाते हैं। इस पाइप को गिट्टी की परत से थोड़ा ऊपर निकाल कर रखते हैं। इसके बाद पौधा रोपते हैं और चारो और खाद युक्त काली मिट्टी डालते हैं। इसके बाद पौधे में पानी डालते हैं तो वह पानी सीधा पौधे की जड़ों तक जाता है। जहां सामान्य तौर पर तीन बाल्टी में काम होता था, इस तकनीक को अपनाने से आधी से एक बाल्टी तक ही काम हो जाता है।
दीपेश की इस तकनीक का प्रयोग शहरी क्षेत्र के लोग भी कर सकते हैं, जहां पानी की समस्या विकराल होती जा रही है। वॉशिंग मशीन में कपड़े धोने के बाद बचे हुए पानी को फैंकने बजाए इसे बाल्टी में भरकर छत या खुले स्थान पर 24 घंटे के लिए रखा जा सकता है। 24 घंटे में कास्टिक सोडा नीचे बैठ जाने के बाद इससे भी पौधों को सींचा जा सकता है। दीपेश की विकसित इस तकनीक से ना सिर्फ विकराल होती जा रही पानी की समस्या को दूर करने में मदद मिल सकती है। साथ ही पेड़ और जल संरक्षण में भी हम भागीदार बन सकते हैं।
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