रोचक: एक मतीरे के पीछे जब हुई बीकानेर-नागौर रियासतों की जंग, बहा हजारों सिपाहियों का खून!
जयपुर। आज हम आपको एक ऐसी लड़ाई के बारे में बताने जा रहे है जो की एक तरबूज के लिए लड़ी गई और इस लड़ाई में हजारो सिपाही शहीद हो गए। यह लड़ाई दुनिया की एक मात्र ऐसी लड़ाई है जो की केवल एक फल के लिए लड़ी गयी और इतिहास में इसे “मतीरे की राड़” के नाम से जाना जाता है।
यह कहानी है 1644 ईस्वी की जब बीकानेर रियासत का सीलवा गांव ओैर नागौर रियासत का जाखणियां गांव जो की एक दूसरे के समानांतर स्थित थे। यह दोनों गांव नागौर रियासत और बीकानेर रियासत की अंतिम सीमा थी।
READ MORE : 40 हजार के इनामी डकैत जगन गुर्जर ने चौथी बार किया सरेंडरएक मतीरे के लिए छिड़ गयी दो रियासतों की जंग बीकानेर और नागौर रियासतों के बीच एक अजब लडाई लड़ी गयी थी। एक मतीरे की बेल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी किन्तु नागौर की सीमा में फ़ैल गयी। उस पर एक मतीरा यानि तरबूज लग गया। एक पक्ष का दावा था कि बेल उनकी तरफ लगी है, दूसरे का दावा था कि फ़ल उनकी ज़मीन पर पड़ा है।
उस मतीरे के हक़ को लेकर युद्ध हुआ जिसे इतिहास में “मतीरे की राड़” के नाम से जाना जाता है। नागौर और बीकानेर की रियासतों के मध्य ‘मतीरे’ को लेकर झगड़ा हो गया और यह झगड़ा युद्ध में तब्दील हो गया। इस युद्ध में नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया जबकि बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया था।
READ MORE : … तो एनकाउंटर के डर से डकैत जगन गुर्जर का हुआ सरेंडर, हनुमान बेनीवाल ने संसद में उठाई थी मांगबहा हजारों सिपाहियों का खून उस समय बीकानेर के शासक राजा करणसिंह थे और वह मुगलों के लिए दक्षिण अभियान पर गये हुए थे। जबकि नागौर के शासक राव अमरसिंह थे। राव अमरसिंह ने आगरा लौटते ही बादशाह को इसकी शिकायत की तो राजा करणसिंह ने सलावतखां बख्शी को पत्र लिखा और बीकानेर की पैरवी करने को कहा था। लेकिन यह मामला मुग़ल दरबार में चलता उससे पहले ही युद्ध हो गया। इस युद्ध में नागौर की हार हुई । बीकानेर की सेना जीत गयी और उन्हें यह तरबूज मिला।
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