हाईकोर्ट ने 2018 में फैसला दिया था कि राजस्थान सिविल सेवा (अंशदायी) पेंशन नियम, 2005 लागू से पूर्व नियुक्त अनुदानित शिक्षण संस्थाओं के कर्मचारियों को पेंशन नियम 1996 के अनुसार सरकारी सेवकों के समान पेंशन नहीं देना असंवैधानिक है। कोर्ट ने राजस्थान स्वैच्छिक ग्रामीण शिक्षा सेवा नियम, 2010 के नियम 5 के उप नियम को उस सीमा तक असंवैधानिक घोषित किया, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। खंडपीठ ने कहा था कि सभी कर्मचारी जो अनुदानित संस्थानों में राजस्थान सिविल सेवा (अंशदायी पेंशन), नियम 2005 लागू होने से पहले स्वीकृत किए पदों पर 2010 के नियमों के तहत नियुक्त किए गए, वे राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1996 के तहत शासित होंगे। 2010 के नियमों के तहत नियुक्ति से पहले अनुदानित संस्थानों से आहरित कर्मचारी भविष्य निधि को 6 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ सरकार में जमा किया जाए। यह भी स्पष्ट किया था कि यदि अनुदानित संस्थानों के कर्मचारियों द्वारा 2010 के नियमावली के तहत नियुक्ति के बाद ली गई भविष्य निधि उनके द्वारा दो महीने की अवधि के भीतर 6 प्रतिशत की दर से ब्याज के साथ जमा नहीं किया जाएगी, तो वे 1996 के पेंशन नियम के तहत लाभ पाने का हकदार नहीं होंगे।
सुप्रीम कोर्ट तक राहत नहीं मिली
हाईकोर्ट के 2018 के आदेश को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट तक चुनौती दी, लेकिन वहां से राहत नहीं मिली। सरकार ने उन तथ्यों के साथ रिव्यु याचिकाएं दायर की, जिनको पूर्व में निर्णय में शामिल नहीं किया गया था। सरकार का तर्क था कि कोर्ट ने 2010 के जिस उप नियम को असंवैधानिक ठहराया था, उसे 2012 में संशोधित किया जा चुका था। संशोधित उप नियम पर विचार ही नहीं किया गया।