पेशे से व्याख्याता जितेन्द्र 2008 में चित्तौडगढ़ से स्थानांतरित होकर बांसखोह आए थे। तब यहां पेड़ों की कटाई बेरोकटोक चल रही थी। बारिश के कुछ माह बाद ही पेड़ों के ठूंठ दिखने लगते थे। कटाई रोकने में वन विभाग असहाय नजर आ रहा था। पहाड़ी के पास ही घर होने से यह सब देख वह दुखी होते थे। फिर उन्होंने इन पेड़ों को बचाने की ठानी।
कहते हैं ‘जिद के आगे पहाड़ भी झुकते हैं’ और ठान लें तो इसी जिद से पहाड़ का मस्तक ऊंचा भी किया जा सकता है। यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ। पेड़ भी बचे और पर्यावरण भी। हालांकि पेड़ों को कटने से बचाने के लिए उन्हें विरोध और झगड़ा भी झेलना पड़ा। पहले पौधरोपण शुरू किया, लेकिन ज्यादा ध्यान इस बात पर दिया कि मौजूदा पेड़ कटने नहीं चाहिए। आज खुद के घर से लेकर मठ महादेव मंदिर तक पहाड़ी की हरितमा उनकी मेहनत की कहानी बयां कर रही है।
सिंदूर लगाकर बचाए पेड़-
वे हर बारिश में पीपल के पेड़ लगाते है अब तक 50 से अधिक पौधे लगाकर उन्हें पेड़ का रूप दिला चुके हैं। पहाड़ की तलहटी में तीन मंदिर हैं। मंदिरों तक जाने के लिए बरसाती नाला ही रास्ता है। इस रास्ते के किनारों पर लहलहा रहे छल्लरों के पेड़ काफी बड़े हो चुके हैं। ये लगाए नहीं गए, बल्कि विरोध झेलकर बचाए गए हैं। बहुत कोशिश करने पर भी इनका कटना नहीं रुका तो इनके तनों पर सिंदूर पोत दी। तरीका कारगर रहा। अदृश्य खौफ और आस्था ने पेड़ों की जान बचा ली। ग्राम पंचायत पड़ासोली स्थित राजकीय विद्यालय में भी शर्मा ने 21 पीपल के पेड़ लगाकर आमजन के सहयोग से उन सभी का विवाह करा चुके हैं। यह पीपल विद्यालय में अपने आप में मिशाल है।
आर्थिक सहयोग नहीं लिया-
उनका मानना है कि हमें स्थानीय प्रकृति के अनुकूल ही पौधे लगाने चाहिए। उतने ही लगाने चाहिए जितने हम संभाल सकें। पीपल और नीम के पेड़ सबसे उपयुक्त हैं। पीपल के पेड़ों की सार संभाल के लिए गट्टे भी अपने ही पैसों से बनाए। किसी से पेड़ लगाने के नाम पर कोई पैसा सहयोग के रूप में नहीं लिया। बंदरों के उत्पात के कारण पेड़ों के बहुत बड़े हो जाने पर भी साल में दो बार बाढ़ करनी पड़ती है। बाढ़ करने में भगवान माली का पूरा सहयोग मिला।
रोका अवैध खनन-
पिछले साल खलगाई की पहाडिय़ों में पत्थरों का अवैध खनन होना शुरू हो गया था। ट्रैक्टर भरकर जाने लगे थे। वन विभाग को शिकायत की, तब यह रूका।