700 साल पुरानी वाटर हार्वेस्टिंग: पालीवालों का एक और कमाल रेगिस्तान में झील, झील से खड़ीन और खड़ीन से खेती
– 20 किलोमीटर तक फैली बुझ झील-09 खड़ीन जुड़े जिससे करते चने और गेहूं की खेती- सैकड़ों तालाबों में आज भी नहीं रीतता है पानी हमारी विरासत
700 साल पुरानी वाटर हार्वेस्टिंग: पालीवालों का एक और कमाल रेगिस्तान में झील, झील से खड़ीन और खड़ीन से खेती
बाड़मेर/जैसलमेर. रेगिस्तान के जैसलमेर में आकर बसे पालीवालों कुलधरा जैसा खूबसूरत गांव ही नहीं बसाया उन्होंने फिजूल बहने वाले बरसाती पानी को वाटरहार्वेस्टिग सिस्टम का तरीका इजाद कर 20 किमी लंबी एक झील बनाकर उनको खड़ीनों से जोड़ा और खड़ीन के पानी से खेती करने लगे। गेहूं और चने की फसल रेगिस्तान में लहलहाकर जो कमाल उन्होंने 700 साल पहले किया था, वह आज भी रेगिस्तान में जलाशयो को बरसात और उसके बाद लबालब रखने की मिसाल बना हुआ है।
पालीवाल जैसलमेर आकर बसे तो उन्होंने यहां उन गांवों को चुना जहां पानी की उपलब्धता व संभावना थी। उन्होंने यहां बरसाती पानी को सहेजने के लिए बुझ झील बनाई जो बीस किमी तक फैली । जैसलमेर जिले के काठोड़ी क्षेत्र के पूर्व में स्थित उपरला, ठाड़, उत्तर में बप व सरी खड़ीन, खींया के कणात, मूंगल, खुरालो, पदरिया, लाणेला का खड़ीन, खाभा व दामोदर के बीच स्थित बुझ झील फैली हुई है।
बड़े तालाबों में पानी भरा
कुलधरा, खाभा, जाजीया की जसेरी तलाई, काठोड़ी, धनवा, खींया, बासनपीर, लवां की जानकी नाडी, भणियाणा गांव का भीम तालाब, पीथोड़ाई, भू-गांव के तालाब आज भी अपने बरसाती जल संग्रहण को लेकर विख्यात है ।
खड़ीन और नदी का जुड़ाव
मुहारकी, रघुनाथसर, हरियासर, लाखोरिया, सोनाट, खेतरडी, नवोडा, बप, नोवोणी, मसूरडी आदि खड़ीन बने। कोटड़ी गांव से निकलने वाली काक नदी का पानी समा जाता है और इन खड़ीनों के माध्यम से गेहूं और चने की बुवाई कर फसलें ली जाती जो अन्न के साथ समृद्धि देती रही।
कर्नल जेम्स टॉर्ड ने भी लिखा
अंग्रेज शासनकाल के समय आए कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार ‘हासल कृषि की उपज का पांचवां व सातवां भाग लिया जाता था। इसकी वसूली का कार्य सामान्यत: पालीवाल ब्राह्मणों की ओर से किया जाता था। हासल के रूप में अनाज को खरीदकर उनसे प्राप्त नकद राशि को राजकोष में जमा करा दिया जाता था। जैसलमेर रियासत के आसपास के क्षेत्रों में मगरों व छोटी छोटी पहाडियों में निर्मित करीब 500 खड़ीनों की तलहटी में गेहूं व चने की खेती की जाती थी।
एक्सपर्ट व्यू
बरसाती पानी को पीने और खेती के लिए पालीवालों ने तालाब, कुएं, बावडिय़ां, बेरिया बनाई। कम पानी में ज्यादा फसल की तकनीक भी विकसित की। पालीवालों ने जितने बेहतर गांव बसाए उतनी ही बेहतरीन उनकी पानी, जलाशय और फसलों को लेकर सोच रही। – -ऋषिदत्त पालीवाल, सचिव, अखिल भारतीय पालीवाल समाज
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