जैसाणवासियों ने समझ लिया- रक्तदान ही है महादान
– एक संदेश पर रक्तदान करने पहुंच रहे युवा- शहर के साथ गांवों ने भी समझा रक्तदान का महत्व
जैसाणवासियों ने समझ लिया- रक्तदान ही है महादान
जैसलमेर। रक्तदान ही जीवनदान है, इस संदेश का मर्म सीमांत जैसलमेर शहर के बाशिंदों विशेषकर युवाओं के साथ ग्रामीणों ने भी आत्मसात कर लिया है। अब वे दिन बीते कल की बात है, जब डॉक्टर किसी मरीज या प्रसूता को खून चढ़ाने की कहता तब रिश्तेदारों की पेशानी पर बल पड़ जाते। अब तो जिला अस्पताल जवाहिर चिकित्सालय के रक्तकोष यानी ब्लड बैंक में सामान्यत: पॉजिटिव ग्रुप का रक्त हर समय उपलब्ध रहता है और उसके बदले में रक्तदान करने वालों की कोई कमी नहीं है। और तो और पहले जहां चंद स्वैच्छिक रक्तदाताओं की तरफ लोग देखते क्योंकि उनमें रक्त के बदले अपना रक्त देने की एक किस्म की झिझक रहती, अब वह बात भी नहीं रही। ऐसे ही स्वैच्छिक रक्तदान करने वालों की जैसलमेर में एक पूरी पीढ़ी तैयार हो गई है। जिन्हें जैसे ही मोबाइल पर कॉल या संदेश मिलता है, वे तुरंत अस्पताल के ब्लड बैंक में हाजिर हो जाते हैं। जैसलमेर के कई रक्तदाता तो जीवन में 50 से ज्यादा बार रक्तदान कर जिला ही नहीं राज्य स्तर तक सम्मानित हो चुके हैं।
एक संदेश की जरूरत
जैसलमेर के युवा एक संदेश मिलते ही स्वैच्छिक रक्तदान करने के लिए जवाहिर चिकित्सालय जुट जाते हैं और जिस मरीज से उनका कोई रिश्ता नहीं, उसके लिए रक्तदान कर धन्यवाद लेने जितने समय भी रुकते और अपने काम पर लौट जाते हैं। रक्तदान के प्रति जागरूकता बढऩे का ही यह चमत्कार है कि केवल पुुरुष ही नहीं बल्कि महिलाएं व बालिकाएं भी रक्तदान करने के लिए पीछे नहीं रहतीं। कई जने तो ऐसे हैं जो गोपनीय ढंग से रक्तदान का पुनीत कार्य नियमित रूप से कर रहे हैं। यह पिछले डेढ़-दो दशक में सरहदी जिले में रक्तदान को लेकर जगे जज्बे का ही परिणाम है कि राजकीय जवाहिर अस्पताल के ब्लड बैंक में कई यूनिट रक्त जमा रहता है। जब-जब किसी कारणवश ब्लड बैंक में रक्त की कमी होती है, संबंधित चिकित्सक व कार्मिकों की तरफ से स्वैच्छिक रक्तदाताओं तक यह तथ्य पहुंचाए जाने के साथ ही कमी की पूर्ति कर दी जाती है। कोरोना काल में ऐसी दिक्कत आई थी। गत दिनों भी कुछ कारणों से रक्त की कमी बनी, लेकिन उस पर सफलतापूर्वक पार पा लिया गया। कई संस्थाएं और संगठन अपने स्थापना दिवस या किसी महत्वपूर्ण मौके को सबसे बड़े दान के साथ मनाने में जुटी हैं। कुल मिलाकर सरकारी-गैरसरकारी स्तर पर सतत प्रयासों और शिक्षा व सोशल मीडिया के प्रचार-प्रसार ने जैसलमेर जैसे पिछड़े माने जाने वाले इलाके में भी रक्तदान को लेकर पूर्व के दशकों तक चलने वाली भ्रांतियों का निर्मूलन कर दिया है।
1996 में बना ब्लड बैंक
जिले के एकमात्र राजकीय जवाहिर चिकित्सालय में रक्त बैंक की स्थापना वर्ष 1996 में हुई थी। उस समय मरीजों के लिए रक्त की व्यवस्था एक चुनौतीपूर्ण कार्य हुआ करता था, लेकिन देखते ही देखते बीते सालों में व्यापक बदलाव आ गया है। इसी वजह से अस्पताल में थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को रक्त की कमी नहीं रहती। एक अनुमान के अनुसार जिला अस्पताल में हर माह 80 से 90 यूनिट रक्त की जरूरत रहती है। कई बार हादसों, प्रसव, ऑपरेशन, सांप के काटने तथा थैलेसीमिया रोग की स्थिति में मरीज को काफी मात्रा में रक्त की आवश्यकता रहती है, लेकिन उन सबके लिए व्यवस्था हो ही जाती है। ऐसे भी अनेक रक्तदाता हैं, जो तीन माह का अंतराल होते ही अस्पताल पहुंच कर रक्तदान कर जाते हैं। कई जने अपने जन्मदिन पर रक्तदान जैसा पुनीत कार्य करते हैं।