परीक्षण के दौरान इसमें किसी तरह की खामी नहीं आई। तोप वांछित सभी मानकों पर खरी उतरी है। सेना में शामिल होने के लिए अब सेना की स्वीकृति की जरूरत है। सूत्रों ने बताया कि इस तोप का वर्ष 2013 से परीक्षण किया जा रहा है। अब तक इससे चार हजार गोले दागे जा चुके हैं। गत सात जून को पोखरण में हुए परीक्षण के अंतिम दिन 100 गोले दागे गए थे। इसकी क्षमता को परखने के बाद ओएफबी के विशेषज्ञों ने इसे सेना में शामिल होने के लिए हरी झंडी दे दी है।
ओएफबी के सूत्रों ने बताया कि सेना को ऐसी कुल 400 तोपों की जरूरत है, हालांकि सेना ने अभी 18 तोपों के निर्माण के लिए कहा है। वैसे सेना की योजना फिलहाल 118 धनुष तोपों को शामिल करने की है।
ये हैं खासियतें
धनुष तोप मूलत: बहुचर्चित स्वीडन की बोफोर्स तोप का ही उन्नत स्वदेशी संस्करण है। लिहाजा इसे देशी बोफोर्स के नाम से भी जाना जाता है। इसके 80 प्रतिशत कलपुर्जे स्वदेशी हैं। बोफोर्स तोप जहां 27 किलोमीटर की दूरी तक निशाना साध सकती है, वहीं यह 39 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य भेद सकती है।
धनुष तोप मूलत: बहुचर्चित स्वीडन की बोफोर्स तोप का ही उन्नत स्वदेशी संस्करण है। लिहाजा इसे देशी बोफोर्स के नाम से भी जाना जाता है। इसके 80 प्रतिशत कलपुर्जे स्वदेशी हैं। बोफोर्स तोप जहां 27 किलोमीटर की दूरी तक निशाना साध सकती है, वहीं यह 39 किलोमीटर की दूरी तक लक्ष्य भेद सकती है।
बोफोर्स तोप के हाइड्रोलिक प्रणाली के विपरीत यह इलैक्ट्रोनिक प्रणाली से युक्त है। अंधेरे में देखने वाले उपकरणों की मदद से यह रात में भी लक्ष्य भेद सकती है। 45 कैलिबर की क्षमता की इस तोप में 155 एमएम के गोले का इस्तेमाल होता है, और यह एक मिनट में छह तक गोले दाग सकती है।
कीमत में भी है किफायती
ओएफबी सूत्रों ने बताया कि यह तोप बोफोर्स और इसके समकक्ष अन्य तोपों की तुलना में न केवल सस्ती है बल्कि इसमें उनसे उन्नत प्रणाली लगाई गई है। धनुष तोप की प्रति इकाई की कीमत 15 करोड़ रुपये की है, जबकि अमरीका से हासिल की जा रही एक अल्ट्रालाइट होवित्जर तोप जहां 33 करोड़ रुपये और दक्षिण कोरिया से इसी श्रेणी की खरीदी जा रही के-9 थंडर प्रति तोप 42 करोड़ रुपये कीमत की है।
ओएफबी सूत्रों ने बताया कि यह तोप बोफोर्स और इसके समकक्ष अन्य तोपों की तुलना में न केवल सस्ती है बल्कि इसमें उनसे उन्नत प्रणाली लगाई गई है। धनुष तोप की प्रति इकाई की कीमत 15 करोड़ रुपये की है, जबकि अमरीका से हासिल की जा रही एक अल्ट्रालाइट होवित्जर तोप जहां 33 करोड़ रुपये और दक्षिण कोरिया से इसी श्रेणी की खरीदी जा रही के-9 थंडर प्रति तोप 42 करोड़ रुपये कीमत की है।
इसके अलावा इस तोप के रखरखाव से सम्बन्धित और अन्य सहायक उपकरण स्वदेशी हैं। सूत्रों ने बताया कि इस तोप को 2016 में तैयार करके इसे वर्ष 2017 में सेना में शामिल किया जाना था, लेकिन दो वर्ष पहले परीक्षण के दौरान इसकी नली में एक गोला फटने से इसमें रुकावट आ गई। मार्च 2018 में इसमें वांछित सुधार करके फिर से तैयार किया गया और उड़ीसा के बालासोर फायरिेंग रेंज में इसका सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। इसके बाद अंतिम परीक्षण के लिये करीब 10 दिन पहले इसे जैसलमेर के पोखरण फायरिंग रेंज में भेजा गया।
सूत्रों के अनुसार 80 के दशक में सेना में शामिल की गई स्वीडन की बोफोर्स तोप के विवाद के बाद सेना में अब तक नयी तोप शामिल नहीं हो पाई है। बोफोर्स तोप के मूल समझौते के अनुसार स्वीडन से इसके देश में ही निर्माण के लिये तकनीक हस्तांतिरत होना थी, लेकिन इस तोप को लेकर उस समय आये राजनीतिक भूचाल के बाद यह समझौता ठंडे बस्ते में चला गया। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस समझौते को पुनर्जीवित किया गया और स्वीडन से तकनीक लेकर इसे उन्नत बनाकर सेना में शामिल किये जाने का निर्णय किया गया।