जैसलमेर. पाक सीमा से सटे व जैसलमेर से १२० किलोमीटर दूर तनोट क्षेत्र में स्थित माता के मंदिर में १९६५ व १९७१ के युद्धों में पाकिस्तान की ओर से गिराए गए बमों में से एक भी बम यहां नहीं फूटा। भारत-पाक सीमा पर सुरक्षा बल की तनोट चौकी पर बना मातेश्वरी तनोटराय मंदिर के १९६५ और १९७१ में युद्ध के दौरान हुए चमत्कारों से आज भी सीमा सुरक्षा बल के जवान और अधिकारी अभिभूत हैं। यह मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं की भी श्रद्धा का भी केन्द्र है।
जैसलमेर. चमत्कारिक माने जाने वाले हिंगलाज देवी मंदिर में कई लोगों ने श्रद्धावश चांदी के छत्र चढ़ाए हैं।यहां आने वाले दर्शनार्थियों को विश्वास है कि यदि उन्हें आभास होता है कि देवी उन्हें निहार कर मुस्करा रही है तो उनके सारे दुख व समस्याएं दूर हो जाती है और मनोकामनाएं पूर्ण होती है। जैसलमेर की गांधी कालोनी क्षेत्र में करीब १५ गुणा २५ फीट भूखण्ड पर बना यह मंदिर आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण है।
जैसलमेर के जेठवाई रोड स्थित माता कालेडूंगरराय खेजडिय़ा मंदिर का जीर्णोद्धार के बाद सौन्दर्य खिल उठा है। मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार मंदिर का निर्माण संभवत: महारावल जवाहरसिंह के समय हुआ था और महारानी कल्याण कंवर ने इसकी नींव रखी थी। यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है।
जिले के बाशिंदों का सात बहिनों के चमत्कारिक परचों पर अटूट विश्वास है। मलका प्रोल के भीतर एवं मूल तालाब के समीप स्थित पनोधराय देवी का मंदिर की स्थापना वर्ष १९६७ में की गई थी। करीब ३१ वर्ष बाद इसका जीर्णोद्धार ३ फरवरी १९९८ को करवाया गया था। शारदीय नवरात्रि के दौरान प्रतिमा पर आकर्षक शृंगार किया जाता है। नव विवाहित जोड़े पनोधराय माता के दर्शन करना नहीं भूलते।
जैसलमेर. ‘कंडियाला कुल दीपक है, जोगण पीठ जरुर। भली करे भूरेरियो, अन्न-धन दे भरपूर।Ó जैसलमेर जिले से पांच किमी दूर मूलसागर गांव में स्थित भूरेरियों माता का मंदिर वर्षों से आस्था का केन्द्र है। बताते हैं कि जगाणी वंश के लोग जब जैसलमेर से सिंध प्रदेश में जा बसे थे तब माऊ के ठालों की मालाएं अपने साथ ले गए थे। वहां से से लौटकर आने के बाद उसमें और भी वृद्धि होती गई। ये सभी मालाएं इस समय जगाणी बंधुओं के गांव मूलसागर में देवी के मंदिर में सुशोभित है। श्रद्धालु इन्हीं ठालों की मालाओं की पूजा-अर्चना करते हैं। जीर्णोद्धार के बाद तो यहां का स्वरुप काफी निखर गया है।
जैसलमेर. जैसलमेर शहर से २७ किलोमीटर दूर कालेडूंगराय माता के पैदल चलकर दर्शन करने की परंपरा आज भी बनी हुई है। हड्डा-काणोद मार्ग पर स्थित कालेडूंगरराय मंदिर ऊंचे पहाड़ पर काले पत्थरों के बीच स्थित है। लोगों को भरोसा है कि माता की कृपा से ही कोई विपत्ति नहीं आती। नवविवाहित जोड़े भी माता का आशीर्वाद लेने के लिए पदयात्रा के लिए रवाना होते हैं। जैसलमेर से उत्तर दिशा में मोहनगढ़ मार्ग पर स्थित कालेडूंगरराय मंदिर में व माघ शुक्ल की चतुर्दशी को मेला लगता है।
पोकरण कस्बे के पश्चिम दिशा में तीन किमी दूर आशापूर्णा देवी का ऐतिहासिक व विशाल मंदिर स्थित है, जो यहां के लोगों के अलावा बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर, फलोदी, बाड़मेर आदि क्षेत्रों से आने वाले सैंकड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। पुष्करणा ब्राह्मण समाज के बिस्सा, माहेश्वरी समाज के टावरी, मैढ क्षत्रिय स्वर्णकार समाज, राजपूतों में खींची वंशीय राजपूत जाति की कुलदेवी आशापूर्णा का मंदिर यहां स्थित है। मंदिर की व्यवस्थाओं व देखरेख का जिम्मा पोकरण बिस्सा समाज के लोग संभालते है। समय के साथ-साथ इस मंदिर का विकास व विस्तार होता रहा। मंदिर के ठीक सामने आशापुरा धर्मशाला ट्रस्ट बीकानेर की ओर से एक दो मंजिला विशाल धर्मशाला का भी निर्माण करवाया गया है, जिसमें करीब 50-6 0 कमरों में ठहरने, भोजन व गौशाला की व्यवस्था की गई है।
जैसलमेर. जैसलमेर से 5 किमी. दूर गजरूपसागर मंदिर में स्वांगिया माता का मंदिर जन-जन की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है। यहां विगत वर्षो में काफी विकासात्मक बदलाव आए है। शहर से दूर माता के शरण में आकर श्रद्धालु खुद को काफी राहत में महसूस करते है। श्रद्धालुओं का मानना है कि सच्चे मन से माता से प्रार्थना करने पर वह हमेशा पूरी होती है।