यूं तो जिम्मेदारों की ओर से हर वर्ष नवाचारों के दावे किए जाते हैं, लेकिन स्थिति जुदा ही रहती है। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुके मरु महोत्सव में शोभायात्रा, मिस्टर डेजर्ट और मिस मूमल जैसी प्रतियेागिताओं, सीसुब के ऊंटों के करतब और प्रदेश व कुछ राज्यों के लोक कलाकारों की प्रस्तुतियोंं के अलावा ज्यादातर बदलाव या नवाचार देखने को नहीं मिल रहे हैं।
यह भी उलझन
मरु महोत्सव के दौरान रात के समय आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों के संबंध में प्रशासन व पर्यटन महकमा भी पशोपेश में पड़ जाता है।जब वह लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर जोर देता है तो उसकी यह कहकर आलोचना कर दी जाती है कि, नई पीढ़ी को जोडऩे के लिए इसमें बदलाव आवश्यक है।ऐसे में जब नए जमाने में लोकप्रिय बैंड आदि को आमंत्रित किया जाता है तब कह दिया जाता है कि, यह सब तो सैलानी महानगरों में रोजाना देखते-सुनते हैं।