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जैसलमेर

जहां हिन्द की फौजों ने शौर्य से लिखी अमिट गाथा, वहीं पहुंची स्वर्णिम विजय मशाल

-ऐतिहासिक जीत के हीरो रहे कुलदीपसिंह चांदपुरी की धर्मपत्नी सुरिंदर कौर चांदपुरी ने ग्रहण की मशाल- सरहद से सटे रेगिस्तानी जिले में शनिवार को एक और तारीख इतिहास के पन्नों पर दर्ज

जैसलमेरJul 11, 2021 / 10:44 am

Deepak Vyas

जहां हिन्द की फौजों ने शौर्य से लिखी अमिट गाथा, वहीं पहुंची स्वर्णिम विजय मशाल

जहां हिन्द की फौजों ने शौर्य से लिखी अमिट गाथा, वहीं पहुंची स्वर्णिम विजय मशाल

लोंगेवाला (जैसलमेर). सरहद से सटे रेगिस्तानी जैसलमेर जिले में शनिवार को एक और तारीख इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो गई। हिन्द की फौजों ने करीब 50 वर्ष पहले जहां शौर्य से अमिट गाथा लिखी, उसी ‘दुश्मन टैंकों के कब्रगाहÓ लोंगेवाला में वर्ष Ó७१ के ऐतिहासिक युद्ध की 50 वीं वर्षगांठ की प्रतीक के रूप में स्वर्णिम विजय मशाल पहुंची। यहां पश्चिमी छोर की विजय मशाल भी कुलदीपसिंह चांदपुरी की धर्मपत्नी सुरिंदर कौर चांदपुरी ने लोंगेवाला युद्ध स्मारक पर ग्रहण की। यह दृश्य देख जेहन में जीत के हीरो रहे चांदपुरी की स्मृति विजय दिवस पर एक बार फिर सजीव हो गई। शनिवार को लोंगेवाला क्षेत्र में मौसम 1971 के युद्ध के दौरान जाड़े की जकडऩ जैसा नहीं था, भीषण गर्मी व तन झुलसाने वाली गर्मी थी, लेकिन विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना के आकार लेने के गौरवशाली अतीत पर एक और पन्ना यहां लिखा जा रहा था। गौरतलब है कि वर्ष 1971 के 5 और 6 दिसम्बर की सर्द रात में जैसलमेर का रेगिस्तान भारतीय सैनिकों के पराक्रम से दहकने लगा था। तत्कालीन मेजर कुलदीपसिंह चांदपुरी के नेतृत्व में भारतीय सेना की 23 पंजाब रेजिमेंट के 120 जवानों ने तब पाकिस्तान के करीब 2000 सैनिकों और टैंकों को पूरी रात रोके रखा। सुबह सूरज की पहली किरण के साथ भारतीय वायुसेना के हंटर विमानों ने पाकिस्तान के टैंकों पर बमवर्षा कर उनकी कब्रगाह बना दी थी। यह जगह जैसलमेर जिले की लोंगेवाला पोस्ट थी और इस जीत के हीरो कुलदीपसिंह चांदपुरी बने। भारतीय सेना के इस अधिकारी की ओर से जैसलमेर के धोरों में दिखाई गई वीरता के तराने आज भी फिजां में गूंजते हैं। इस योद्धा का 17 नवंबर 2018 को 77 साल की उम्र में निधन हो गया।
महान विजय की मिसाल बनी मशाल
वर्ष 197१ के भारत-पाक युद्ध की 50 वीं वर्षगांठ की महान विजय की मिसाल बनी स्वर्णिम विजय मशाल लोंगेवाल पहुंची। इस ऐतिहासिक विजय को यादगार बनाने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों की ओर से वर्ष 2021 को स्वर्णिम विजय वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। यह विजय मशाल भारतीय सशस्त्र बलों की ओर से उन जांबाजों के बलिदान का प्रतीक है, जिन्होंने निर्णायक विजय में भूमिका दिलाई। पश्चिमी छोर की विजय मशाल कुलदीपसिंह चांदपुरी की धर्मपत्नी सुरिंदर कौर चांदपुरी ने ग्रहण की। कोणार्क कोर के जीओसी लेफ्टिनेंट जनरल पीएस मिन्हास ने लोंगेवाला युद्ध स्मारक पर उन बहादुर जवानों के सम्मान में श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने 1971 के युद्ध में मातृभूमि की रक्षा के लिए बलिदान दिया। न तो दुश्मन को रोकने के लिए बारूदी सुरंगें बिछाई गई और न ही बड़े हथियारों का जखीरा। इनके साथ था तो सिर्फ जवानों का हौसला और राष्टï्र पर कुर्बान हो जाने की भावना। लोंगेवाला पोस्ट की सुरक्षा का जिम्मा उठाने वाली टुकड़ी पर सीमा स्तम्भ संख्या ६३२ व २३९ के बीच के क्षेत्र में दायित्व सौंपा गया था। १९७१ में लोंगेवाला में भारतीय वायुसेना ने अपनी बहादुरी और अचूक निशानों से पाकिस्तान के सैनिकों व उनके टैंकों की धज्जियां उड़ा दी।
लोंगेवाला की माटी से एकत्रित की मिट्टी
कोणार्क कोर की स्वर्णिम विजय वर्ष टीम ने उसी स्थान मिट्टी एकत्रित की, जहां मेजर कुलदीप चांदपुरी ने 23 पंजाब रेजिमेंट की अल्फा कम्पनी के 120 बहादुर जवानों का नेतृत्व करते हुए 5 दिसंबर 1971 को 2000 सैनिकों और 65 टैंकों से लैस पाकिस्तानी हमले को नाकाम कर दिया था। यह 23 पंजाब रेजीमेंट की अल्फा कम्पनी के सैनिकों की बहादुरी का ही कारनामा था, जिसने दुश्मन के करीब 179 जवानों और 37 टैैंकों को बर्बाद कर दिया। विजय मशाल तनोट और सम को जोड़ते हुए मुनाबाव होकर अग्रिम यात्रा का सफर तय करेगी।
यह हुआ लोंगवाला युद्ध में
-40 टैंक पाकिस्तान के टी-५९ की युद्ध में लोंगेवाला में बन गई कब्रगाह
-६५ किलोमीटर दूर जैसलमेर तक युद्ध के दौरान सुनी गई थी बमों की धमकसुनी गई।
-90 हजार सैनिकों के साथ पाकिस्तानी सेना के मुखिया जनरल नियाजी ने किया था आत्मसमर्पण
-120 सपूतों की वीरता की याद में बनाया गया है लोंगेवाला युद्ध स्थल
-179 दुश्मन सैनिक युद्ध में हुए थे हताहत
जहां युद्ध हुआ वहीं बनाया स्मारक
विशेषज्ञों के अनुसार लोंगेवाला युद्ध स्मारक का निर्माण ठीक उसी स्थान पर किया गया हैं, जहां 1971 की रात को भारत के बहादुर सैनिकों ने वीरता और अद य साहस से पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। भारतीय सैनिकों ने इस युद्ध में पाकिस्तान के 179 दुश्नों को हताहत कर उनकी 37 टैंकों को भी ध्वस्त किया था।
लोंगेवाला युद्ध स्थल का आकर्षण
– एक – टी-59 पाकिस्तानी टैंक
– एक – शेरमन पाकिस्तानी टैंक
– दो- 106 एमएम रिकाइलेस गन
– 2 – आरसीएल जीप
– लोंगेवाला के 5 योद्धाओं की चित्रावली
– दृश्य-श्रव्य सिनेमाघर
– युद्ध दृश्य
– तीन बंकरों के साथ टुकड़ी की ओर से प्रतिरक्षित चौकी।
-आरसीएल जीप
-बर्बाद हुए टैंक और गाडिय़ां
-व्यवस्थित शॉप व जलपान गृह

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