script4 करोड़ 65 लाख भी नही समेट पाए दलहनपुर की बिखरी सम्पदा | 4 crore 65 lakhs can not be reconciled, scattered estates of Dalhmanpu | Patrika News
झालावाड़

4 करोड़ 65 लाख भी नही समेट पाए दलहनपुर की बिखरी सम्पदा

-कचरा व गंदगी के बीच पड़ी है दुर्लभ प्रतिमाएं-विभाग ने मात्र परकोटे के अंदर ली सुध

झालावाड़Oct 13, 2018 / 10:43 am

jitendra jakiy

4 crore 65 lakhs can not be reconciled, scattered estates of Dalhmanpu

4 करोड़ 65 लाख भी नही समेट पाए दलहनपुर की बिखरी सम्पदा

4 करोड़ 65 लाख भी नही समेट पाए दलहनपुर की बिखरी सम्पदा
-जितेंद्र जैकी-
झालावाड़. राजस्थान व मालवा के संगम स्थल पर स्थित अकलेरा तहसील में स्थित शिल्प तीर्थ दलहनपुर के मठ व मंदिर समूह की सरकार ने सुध तो ली लेकिन पुरातत्व विभाग की ओर से 4 करोड़, 65 लाख रुपए की लागत से इसके जीर्णोद्वार व सौंदर्यकरण के कार्य के तहत परकोटे के अंदर ही पुरा सम्पदा को सहेजा गया। जबकि इस मंदिर व मठ समूह में परकोटे के मुख्य प्रवेश द्वार के पहले ही चारो ओर गंदगी व कचरे के बीच दर्जनों कलात्मक स्तम्भ व कई प्रतिमाएं उपेक्षित होकर बिखरी पड़ी है। विभाग की ओर से इस काम को मार्च में ही निपटा दिया गया बताया जबकि बाहर पड़ी प्रतिमाएं व खड्डर होते स्तम्भ आदि आने वाले पर्यटकों के सामने बिगड़ी छवि प्रस्तुत करते है।
-यह हुआ जीर्णोद्वार कार्य
हालाकि विभाग की ओर से परकोटे के अंदर मंदिर, स्तम्भ, प्रतिमाएं, शिलालेख, दीवारें, द्वारों का जीर्णोद्वार कर गेटों व खिडकियों पर किवाड़ आदि लगवाए है। पर्यटकों को नदी किनारे से प्राकृतिक सौंदर्य निहारने के लिए पत्थर की बैंचें आदि व कार्यक्रम आदि करवाने के लिए मंच का निर्माण किया गया है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए हर सम्भव प्रयास किए गए लेकिन बाहर पड़ी पुरा सम्पदा को समेटने का प्रयास नही किया गया।
-यह है स्थल की विशेषता
झालावाड़-अकलेरा मार्ग पर स्थित बोरखेड़ी ग्राम से दक्षिण में दस किलोमीटर दूर छापी नदी के ऊंचे भाग पर स्थित यह स्थल कभी शैव साधकों की तंत्र साधना, विज्ञान एंव चिंतन का विशाल केंद्र रहा। दलहनपुर प्रचाीन भारतीय शिल्पकला के उस युग का दर्शन कराता है जब देश के शैव मठों में तंत्र , दर्शन और साधना के साथ कला और स्थापत्य का भी विकास हो रहा था। विशाल जलराशी और छापी नदी के निकट होने से यह स्थल चारो ओर हरियाली से आवृत है। यहां के प्रकृति प्रदत्त दृश्य और वन सम्पदा पर्यटकों को मुग्ध करने की पूर्ण क्षमता रखते है।
-यह है इतिहास
इतिहासकार ललित शर्मा के अनुसार इस मठ का 1161 ईस्वी में मठाधीश पालक श्रीदेव साहु था। वहीं दलहनपुर को देलाशाह नामक श्रेष्ठी साहूकार ने करीब 700 वर्ष पहले बसाया था। दलहनपुर क कई मंदिर हजार वर्ष पुराने है बाद के काल खंड़ो में यहां कई मंदिरों, मठो व बावडिय़ों का निर्माण हुआ। पूर्व में यह स्थल कोटा राज्यान्तर्गत था। यहां कोटा महाराव माधोसिंह ने 1681-1705 के बीच देवालय को अपनी वैष्णव भक्ति आस्था के रुप में निर्मित करवाया था। 1838 ईस्वी में झालावाड़ राज्य निर्माण के समय यह स्थल पुन कोटा राज्य में चला गया और जिला बनने के बाद 1948 में इसे वापस झालावाड़ में सम्मिलित कर लिया गया। दलहनपुर मठ मुख्यत शैव कापालिकों का तंत्र साधना केंद्र रहा था। कालान्तर में उचित रखरखाव व देखभाल के अभाव में इसकी स्थिति बिगड़ती चली गई।
-सहेजने का प्रयास किया जाएगा
इस सम्बंध में पुरातत्व व संग्रहालय विभाग
के सहायक अभियंता आर.एम झालानी का कहना है कि दलहनपुर मठ के जीर्णोद्वार व सौंदर्यकरण का काम तो पूरा हो चुका है, अगर बाहर प्रतिमाएं आदि बिखरी पड़ी है तो उनको भी निरीक्षण करने के बाद सहेजने का प्रयास किया जाएगा।

Home / Jhalawar / 4 करोड़ 65 लाख भी नही समेट पाए दलहनपुर की बिखरी सम्पदा

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो