मेडिकल कॉलेज की लैब से कोरोना जांच होने के बाद भी मृतक के परिजनों को समय से जांच की सूची नहीं मिल पा रही है।कुछ ऐसा ही मंगलवार को भी झालरापाटन के एक मृतक के परिजनों के साथ हुआ। परिजन इधर से उधर अधिकारियों के चक्कर काटते रहे, इसके बाद भी सूची नहीं नहीं मिलने से दोपहर 1 बजे रिपोर्ट आने के बाद डेड बॉडी दी गई है। वहीं रिपोर्ट देरी से आने के चलते रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी भर्ती मरीजों को अन्य वार्ड में शिफ्ट नहीं कर पाते हैं। इससे स्टाफ को भी खासी परेशानी हो रही है। ऐसे में कई बार मरीज की रिपोर्ट पॉजिटिव भी आ जाती है तो उसे तुरंत इलाज नहीं मिल पाता है। ऐसे में विशेषज्ञों ने बताया कि लैब के कर्मचारियों को दो शिफ्ट में बुलाकर जांच प्रक्रिया सुबह आठ बजे शुरू कर दी जाएं तो मरीजों की जांच समय से मिल सकती है। सुबह आठ बजे लगाने वाले की 2बजे तक तथा उसके बाद सैंकड लॉट रात आठ बजे तक आ सकती है। इससे स्टाफ सहित मृतक के परिजनों व अन्य कोरोना की जांच वाले लोगों को रातभर परेशान नहीं होना पड़ेगा। सूत्रों ने बताया कि कई बार तो मरीजों की दो दिन तक जांच नहीं आ पाती है, ऐसे में मरीज के सभी परिजन चिंता में रहते हैं।
सोमवार को झालरापाटन के बुजुर्ग की मौत हो गई थी। झालरापाटन के नारायण टॉकिट क्षेत्र कोरोना संक्रमितम क्षेत्र होने से एक दिन पूर्व ही जांच हुई थी, रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी फिर से कोरोना की जांच करवाई गई। ऐसे में बुजुर्ग की रिपोर्ट फिर भी नेगेटिव आई। लेकिन मृतक के परिजनों को इधर-उधर इतने चक्कर कटवाएं इससे तो मानवता तार-तार होती नजर आई। मृतक के परिजन गोवर्धन ने बताया कि मेरे फुफा जी बुजुर्ग थे, एक दिन पूर्व ही कोरोना की जांच हुई थी, पहले तो बोला की इससे काम चल जाएगा, दुबारा जांच नहीं करवानी होगी। बाद में कहा कि नहीं जांच होगी, तो जांच करवाई गई। रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी समय से डेड बॉडी नहीं दी गई। कहते रहे कि शाम तक मिल जाएगी, नहीं मिली रात तो 12 बजे डीन साहब को छह बार फोन करने के रिपोर्ट बताई, परेशान होकर डीन साहब से कहा कि साहब आपके पैरों में पढ़ जाऊं अब ज्यादा परेशान मत करों। इसके बाद रिपोर्ट नेगेटिव आई। ऐसे में बोला गया कि डेड बॉडी सुबह जल्दी दे देंगे। लेकिन मंगलवार को दिन में एक बजे रिपोर्ट दी उसके बाद डेड बॉडी। जबकि सोमवार को ही रिश्तेदार अंतिम संस्कार के लिए आ गए थे, लोग इंतजार करते रहे। ऐसे में मेडिकल कॉलेज प्रशासन को कम से कम डेड बॉडी की तो सबसे पहले जांच करवानी चाहिए। ऐसा ही एक केस भवानीमंडी की महिला के साथ भी हुआ है जिसकी डिलेवरी हुई थी, जांच दो दिन बाद आई है।
कोरोना जांच के चलते एक्सीडेंट केस में ऑर्थोपेडिक विभाग में भर्ती हुआ सुकेत निवासी एक मरीज का कोरोना टेस्ट हुआ, जांच भी नेगेटिव। लेकिन ऑपरेशन नहीं हो पाया है।
141डेड बॉडी की हुई जांच-
मेडिकल की लैब में अभी तक 141 डेड बॉडी की जांच हो चुकी है।कई बार तो एक दिन में पांच से सात मृतक की बॉडी भी डीप फ्रीजर में रखवाई जाती है। लेकिन मेडिकल कॉलेज में एनाटॉमी विभाग के छह बॉक्स वाले डीप फ्रीज खराब है तथा एसआरजी चिकित्सालय के एक दो बॉक्स वाला फ्रीजर भी खराब है। ऐसे में एक दिन में आधा दर्जन तक लाशें आने के बाद फ्रीजर में रखी बॉडी की रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद दूसरी बॉडी को फ्रीज में रखवाया जाता है। ऐसे में परिजनों को भी खासी परेशानी होती है।
डेड बॉडी को डीप फ्रीजर में रखने के लिए परिजन ही लेकर जाते हैं। ऐसे में रास्ता में खाई खुदी होने से कई बार डेड बॉडी के गिरने का भी खतरा
रहता है। ऐसे में परिजन चारों तरफ से स्ट्रेचर को उठाकर ही खाई को पार करते हैं।
सैंपल की जांच दो बार लगा रहे हैं। सुबह लगाने वाले सैंपल की जांच 4-5 बजे तक आती है। एक रिपोर्ट में आने में 6-7 घंटे लगते हैं। तीन मशीनों पर जांच होती है तो समय तो लगता है। डेड बॉडी की जांच भी सैंपल के साथ लगाई जाती है। अलग से नहीं लगा सकते हैं।
डॉ.दीपक गुप्ता, डीन मेडिकल कॉलेज, झालावाड़।