खुद करती डिजाइन आशा ने बताया कि वह थोक में कपड़े खरीदती है। फिर खुद डिजाइन करती है। गोटा पत्ती व कढाई का काम समूह की अन्य महिलाओं से करवाती है। इसके बदले प्रत्येक कपड़े को तैयार करने के नग के हिसाब से भुगतान करती है। पूरा खर्चा निकालने के बाद हर वर्ष लगभग तीन लाख रुपए से ज्यादा की बचत हो जाती है। परिवार की आय बढ़ी है। खुद के बिजनेस में किसी के अधीन नहीं रहना पड़ता है। मैं खुद मर्जी की मालिक हूं। समूह से जुड़ी सुमन ने बताया कि लहंगे के अलावा कढाई के प्लाजो, कढाई के स्कर्ट की भी अच्छी बिक्री हो जाती है।
इनका कहना है
जिले में अनेक समूह हैं जिनकी महिलाएं मेहनत कर खुद का बिजनेस कर रही हैं। ढिगाल की आशा मीणा ने खुद का बिजनेस शुरू किया है। उनके डिजाइन किए हुए लहंगे, ब्लाउज व चुनरी की खूब मांग है। अब जल्द ही महिलाओं को ऑनलाइन प्लेटफार्म उपलब्ध करवाया जाएगा, ताकि वे घर बैठे भी अपने उत्पाद बेच सके।