नवरात्रि में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण उनकी पूजा भंग हो गई। जिसके बाद वे घूमते फिरते गुढ़ागौडज़ी आ गए। करीब 13 माह तक गुढ़ागौडज़ी की पहाडिय़ों पर उन्होंने तपस्या की। जिसके बाद कुछ समय जसरापुर के श्मशानों में भी रहे। आखिर उन्हें चिड़ावा रास आया और शिवनगरी नाम देकर वहीं रहने लगे। यहां बाबा पूर्ण अघोरी रूप धारण कर चुके थे। वे भगवती दुर्गा के परम उपासक थे तथा दुर्गा मंत्र बीज ड ड ड का हर वक्त जाप करते रहते थे। इनके मुंह से उस वक्त जो भी बात निकल जाती वह सत्य होती। यह चमत्कार देख कई लोग इनके परम भक्त बन गये। कई लोग इनसे डरने भी लगे क्योंकि अनिष्ट घटने वाली घटनाओं का भी पूर्व संकेत कर देते थे। सच्चे साधक होने के बाद भी लोग इन्हें पागल मान कर बावलियो पंडित कहने लगे। अपने जीवन का अधिकतम समय बाबा ने शिवनगरी चिड़ावा में ही व्यतीत किया। संवत 1969 पौष सूदी नवमी गुरुवार को बाबा ने चिड़ावा के शिवमंदिर में अपने शरीर का त्याग कर दिया।
बिड़ला को मिला था आशीर्वाद
बाबा ने चिड़ावा में रहते हुए लोगों को अनेक चमत्कार दिखाए। लेकिन पिलानी के सेठ जुगल किशोर बिड़ला पर उनकी अटूट कृपा रही। पिलानी से रोज चिड़ावा आकर बाबा के दर्शन किये बिना भोजन नही करने एवं उनकी सेवाभाव से खुश होकर बाबा ने बिड़ला को करणी बरणी हमेशा चालू रहने का आशीर्वाद दिया। बिड़ला ने कई बार उनसे पिलानी चलने का आग्रह भी किया लेकिन वे चिड़ावा के भगीणिये जोहड़ से कभी आगे नही गए। इसी कारण बिड़ला ने उनकी यादगार में संवत 1959 में उन्होंने जोहड़ खुदवाकर एक घाट बनवाया। तथा उस पर एक बहुत ऊंची गणेश लाट नाम की स्तूप भी बनवाई।
उस स्तूप से पिलानी साफ दिखाई देता है। उसी स्तूप से देखकर बाबा ने बताया कि पिलानी एक दिन शिक्षा नगरी बनेगा। बाबा ने जिसे भी आशीर्वाद दिया वह धन्य हो गया। पिलानी के सेठ जुगलकिशोर बिड़ला ( Birla Group ) से परमहंस का विशेष स्नेह था तथा इनके आशीर्वाद से ही बिड़ला परिवार उद्योग व व्यापार के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर सका है। बिड़ला को करनी बरनी का तो रामजी को रोगोपचार का, नेमानी को जन्मपत्री तो भालोटिया को अनार का, डॉ गुलझारीलाल, कालीचरण पुजारी, गुरुदयाल सहल, मोतीलाल दर्जी, जमनादास पुजारी, देवीदत्त दायमा, औंकारमल पंसारी, गजानंद मिश्र, खेतड़ी महाराजा अजीत सिंह, चैनसुख दास, शिवबक्सराय सहित अनेक लोगों को दिखाए चमत्कार पूर्ण बातों से परमहंस के प्रति श्रद्धालुओं की भक्ति बढ़ती गयी। जिसके कारण आज देशभर में इनकी महिमा का गुणगान हो रहा है। चिड़ावा व बुगाला में लोग इन्हें ग्राम देवता के रूप में पूजते हैं।
इन जगहों पर बने है बाबा के मंदिर
बाबा के चमत्कारों को लेकर उनके मंदिरों व श्रद्धालुओं की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। जन्मस्थली बुगाला,विद्यास्थली नवलगढ़, तपोस्थली गुढ़ागौडज़ी व समाधिस्थली चिड़ावा प्रमुख धाम है। इनके अलावा खेतड़ी, पिलानी, मुकुंदगढ़, बांसा,घोड़ीवारा, बास नानग,कुचामन,कोलकाता, हैदराबाद, अहमदाबाद,ग्वालियर, सूरत, मुम्बई में मन्दिर बने हुए। साथ ही कई जगहों पर मन्दिर निर्माणाधीन है। हाल ही में बुगाला स्थित बावलिया बाबा की पैतृक हवेली को म्यूजियम का रूप दिया जा रहा है। जिसमें मुंबई के कारीगर कार्य कर रहे है।
म्यूजियम देखने दूर दराज से आते है भक्त
बुगाला स्थित बावलिया बाबा की पैतृक हवेली को इन दिनों म्यूजियम का रूप दिया जा रहा है। बाबा के द्वारा काम में ली जाने वाली सामग्री व हवेली को देखने रोज दूर दराज से भक्त आते रहते है। हवेली का कार्य बावलिया बाबा मेमोरियल ट्रस्ट मुंबई के द्वारा किया जा रहा है। तथा वही के विशषज्ञों की टीम की देखरेख में कार्य किया जा रहा है।