एम्स में ब्लैक फंगस के अब तक 154 और एमडीएम अस्पताल में 76 मरीज पहुंचे। एम्स में 17 और एमडीएम में 13 मरीजों की मौत हुई। एम्स से 61 और एमडीएमएच से 22 मरीज स्वस्थ हो गए।
ब्लैक फंगस की चपेट में आए चालीस प्रतिशत मरीजों को पहले डायबिटीज नहीं थी। कोविड में इन्हें भी डायबिटीज हो गई। यानी इन मरीजों का पुरानी डायबिटीक मरीजों की तुलना में रोग प्रतिरोधक तंत्र मजबूत था इसलिए फंगस इन मरीजों का अधिक नुकसान नहीं कर सकी।
ब्लैक फंगस की चपेट में आते ही जबड़े और आंखें निकालने की भ्रांति के कारण लोगों में खौफ हो गया था। एम्स और एमडीएम अस्पताल के डाटा के अनुसार मोटे तौर पर अब तक केवल 9 प्रतिशत मरीजों की ही आंखें निकालने की नौबत आई है। करीब 23 प्रतिशत मरीजों का पूरा जबड़ा निकालना पड़ा। करीब 60 प्रतिशत मरीजों की दूरबीन से सर्जरी करके उनके अंगों को बचा लिया गया। एमडीएम अस्पताल में देवंतराम नामक मरीज के तीन ऑपरेशन करने पड़े। इसके बावजूद वह अस्पताल से स्वस्थ होकर घर लौटा।
– 95 प्रतिशत ब्लैक फंगस के मरीजों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव थी, बाकी क्लीनिकल पॉजिटिव थे।
– 100 फीसदी मरीज डायबिटीक, कोरोना उपचार में अधिक स्टेरॉइड खाने से फंगस की चपेट में आए।
– 45 वर्ष से अधिक आयु के है अधिकांश मरीज
– 40 प्रतिशत ब्लैक फंगस मरीजों को पता ही नहीं था डायबिटीज का
-डॉ अमित गोयल, ईएनटी विशेषज्ञ, एम्स जोधपुर ‘परसों एक मरीज आया था। उसके बाद तक कोई नहीं आया। पहले की तुलना में मरीज काफी कम हो गए।’
-डॉ महेंद्र चौहान, ईएनटी विशेषज्ञ, एमडीएम अस्पताल