बदलती लाइफ-स्टाइल के कारण आजकल हर घर में एक व्यक्ति डायबिटीज का शिकार बनता जा रहा है। कई लोग डायबिटीज के शुरुआती लक्षण पहचान तक नहीं पाते। इस कारण कई लोग बढ़ी हुई डायबिटीज लेकर चिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं। इस बार वल्र्ड डायबिटीज डे की थीम फैमिली और डायबिटीज रखी गई हैं।
बढ़ रहे टाइप-2 डायबिटीज के पेशेंट हम पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे थे, उस जमाने में टाइप-1 (किशोरावस्था या जवानी में) और टाइप- 2 (लाइफ स्टाइल और 45 की उम्र के बाद) दोनों ही डायबिटीज के बराबर मरीज आते थे। लेकिन आजकल टाइप-2 डायबिटीज के रोगियों की संख्या बढ़ रही हैं। दरअसल, टाइप-1 डायबिटीज का मुख्य कारण शरीर में बीटा सेल जो इंसुलिन बनाते हैं, वे पेन्क्रियाज में फेल हो जाते हैं। पचास फीसदी फेल में कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन इससे ज्यादा बीटा सेल फेल होने पर डायबिटीज तीव्रता पकड़ लेती है। टाइप-1 में स्कूली उम्र और जवानी में लोग डायबिटीज का शिकार हो जाते हैं। डायबिटीज बीमारी में शरीर के बीटा सेल में अज्ञात वायरस हमला करता है, इसके विरुद्ध हमारी एंटी बॉडी बीटा सेल को नष्ट करना शुरू कर देती है। एंटी बॉडी अटैक को रोकने के लिए रिसर्च चल रही है।
– डॉ. आलोक गुप्ता, सीनियर प्रोफेसर, मेडिसिन विभाग, डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज डायबिटीज से पांव खराब हो रहे लंबे समय तक डायबिटीज की शिकायत होने पर नस-नाडिय़ों को नुकसान होने लगता है। इस कारण पैर संवेदनशीलता खोने लगते हैं। उनमें स्पर्श या दर्द अथवा पीड़ा का अहसास नहीं होता है। साथ ही असामान्य दबाव के कारण उनका आकार भी बदल जाता है। कई बार यदि डायबिटीज के मरीज लंबे समय तक खड़े रहते हैं तो उनके पैरों की नसें अवरुद्ध हो जाती हैं, जिसे एथेरोस्केरोसिस भी कहते हैं। इसके कारण ऑटोनॉमिक न्यूरोपैथी होती है, जिससे एनहायड्रोसिस यानी त्वचा सूखने लगती है। जिससे उसमें दरार पड़ती हैं और बैक्टीरिया होने लगते हैं। इन सबके कारण पैरों में जख्म होने लगते हैं। ध्यान न देने पर इसमें छाला या फोड़ा या फि र संक्रमण हो जाता है। जो गैंगरीन की भयावह शक्ल ले सकता है। जो पैर को पूरी तरह से खत्म कर सकता है। रक्त की सप्लाई भी कम होती है। इसे डायबिटीक फु ट कहा जाता है। डायबिटीज रोगियों को इसकी जांच समय-समय पर करवानी चाहिए।
– डॉ. अभिषेक तातेड़, फिजिशियन