भोपालगढ़ कस्बे समेत आसपास के कुड़ी, बागोरिया, नाड़सर, रजलानी, बारनी खुर्द, हीरादेसर, ओस्तरां, आसोप, पालड़ी राणावतां, रड़ोद, सोपड़ा, ताम्बड़िया कलां, अरटिया कलां, गोदावास व देवातड़ा सहित क्षेत्र के सोयला, चटालिया, कजनाऊ व बिराई आदि कृषि इलाकों के कई गांवों में हालांकि जलस्तर घटने के चलते पिछले आठ-दस बरस पहले के मुकाबले कम हुए बुवाई क्षेत्र के बावजूद इस बार भी थोड़ी-बहुत मिर्च की खेती की गई है।
मिर्च की फसल में पैदा हुए माथाबंदी रोग में पौधे का ऊपरी हिस्सा बंध जाता है और काला पड़ जाता है। इसके चलते न तो पौधे की बढ़वार होती है और न ही नए फूल व मिर्च लग पाती है। वहीं डाईबैक का प्रकोप हो जाने पर तो मिर्च का पौधा और उस पर लगने वाली मिर्च सड़-गल जाती है और पौधे भी पीले पड़ जाते हैं तथा इन पर लगी मिर्च जमीन पर गिर जाती है। जिससे वह खाने लायक भी नहीं रहती और संग्रहण भी नहीं हो पाता है। इन रोगों के प्रकोप से मिर्च की पैदावार पर भी व्यापक असर पड़ता है।
भोपालगढ़ क्षेत्र में यूं घटकर बढ़ने लगा मिर्च का रकबा वर्ष- बुवाई हैक्टेयर में 2009-10– 988 2010-11– 628 2011-12– 422 2012-13– 068 2013-14– 073 2014-15– 112 2015-16– 032
फैक्ट फाइल
– 2009-10 में थी 988 हैक्टेयर में बुवाई।
– 2015-16 में रह गई मात्र 32 हैक्टेयर बुवाई।
– 2023-24 हुई है 80 से 100 हैक्टेयर में बुवाई।
– 8-10 साल में बुवाई आ गई 4 से 5 प्रतिशत तक।
– 50-60 मण प्रति बीघा रह गया है उत्पादन
– 1200 से 1400 रुपए प्रति मण में बिकती है हरी मिर्च।
– 2800 से 3000 रुपए प्रति मण में बिकती है लाल मिर्च।
– 50 से 60 हजार रुपए प्रति बीघा आता है खर्च।
– 70 से 80 हजार रुपए तक आया रोगों के कारण इस बार खर्च।
– रामनिवास नायक, किसान भोपालगढ़
जैविक खेती की अलख जगा रहा किसान
लगातार एक ही खेत में फसल लेने से भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी होने तथा विभिन्न रासायनिक कीटनाशक दवाओं के छिड़काव से कवक, जीवाणु व विषाणु अधिक होने के परिणाम स्वरूप रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने से भी मिर्च की फसल में उपज घटी है। इसलिए अब जैविक खेती की बेहद आवश्यकता है।– डाॅ. तखतसिंह राजपुरोहित, पौध विशेषज्ञ