विश्व में गोडावण का आश्रय स्थल भारत-पाकिस्तान का शुष्क घास का क्षेत्र है। वर्ष 2013 में हुए सर्वे में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चोलिस्तान मरुस्थल में 10-12 गोडावण मिले। वहां भी गोडावण को संकटग्रस्त प्रजाति घोषित कर दिया गया है। भारत में एक समय में पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडू के शुष्क क्षेत्र में गोडावण था। वर्तमान में राजस्थान के पाकिस्तान से लगते क्षेत्र और गुजरात के नलिया में ही गोडावण है। नलिया में करीब 10 गोडावण रिपोर्ट किए गए हैं। महाराष्ट्र्र आंध्रप्रदेश व कनार्टक प्रत्येक राज्य दो-चार गोडावण है।
वर्ष 2011 में देश के 5 राज्यों से गोडावण के 63 नमूने लेकर इनके माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए की जांच की गई। इसमें अत्यंत कम आनुवंशिक विविधता मिली। इसके बाद सरकारें जागी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। राजस्थान में वन विभाग को 2012-2017 के मध्य गोडावण बचाने के लिए 13 करोड़ मिले लेकिन विभाग गोडावण बचाने में नाकाम रहा।
– बाड़मेर-जैसलमेर में 150 से अधिक गांव है और प्रत्येक ढााणी में 5 से 10 हजार भेड़-बकरियां है। ये पूरी घास को चट कर जाती है जबकि गोडावण केवल सूखी घास पर ही जिंदा रहता है।
– सेना, बीएसएफ, बाड़मेर-जैसलेमर में तेल-गैस मिलने से बढ़ी मानवीय गतिविधियों से गोडावण प्रजनन नहीं कर पा रही। गर्भवती होने के बाद गोडावण का गर्भपात हो जाता है।
नब्बे के दशक में जैसलमेर के अलावा अजमेर के सांकलिया और बारां के सोरसेन में भी गोडावण थे। वर्ष 2011 के बाद जैसलमेर के अलावा कहीं गोडावण रिपोर्ट नहीं हुआ लेकिन आरपीएससी आरएएस सहित अन्य परीक्षाओं में आज भी सांकलिया व सोरसेन के संबंध में सवाल पूछती है।
देश में गोडावण की कम होती संख्या
वर्ष ——- गोड़ावण की संख्या
1969 ——– 1260 1978 ——– 745
2001 ——– 600 2006 ——–300
2015 ——– 150 2018 ——– 100 से कम
मानव को गोडावण क्षेत्र में जाने से रोकना होगा
‘गोडावण बचाना कोई रॉकेट साइंस नहीं है। हमें इसके लिए 200 से 300 वर्ग किलोमीटर का मानवरहित क्षेत्र बनाना होगा। हमने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी है।
डॉ. संजीव कुमार, पक्षी विशेषज्ञ, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण जोधपुर