विश्नोई खेत से घास काटकर भीकमकौर रोड पर संचालित इच्छापूर्ण बालाजी गोशाला में गायों को चारे के रूप में डाल रहे हैं। गोशाला संचालक ज्योतिष ओमप्रकाश विश्नोई ने बताया कि किंग ऑफ डेजर्ट के नाम से मशहूर यह घास मरुस्थल में वर्षों पूर्व पशुधन का मुख्य आहार रही हैं। सेवण घास पशुधन के लिए सबसे पौष्टिक आहार हैं, लेकिन इसकी उपलब्धता दुर्लभ होती जा रही हैं। वर्षों पूर्व ओरण-गोचर में सेवण घास बहुतायत से होती थी। किंग ऑफ डेजर्ट के नाम से मशहूर यह घास मरुस्थल में वर्षों पूर्व पशुधन का मुख्य आहार थी । सिमटते दायरे से पशुधन के स्वास्थ्य व उत्पादन क्षमता पर स्पष्ट कुप्रभाव नजर आ रहा है।
सेवण के लुप्त होने के एक यह भी सरकार व किसानों की उदासीनता से ओरण, गोचर व चरागाहों में भी ये घास लुप्त होती गई। आधुनिक मशीनों के अधिक प्रयोग से भी इनकी उत्पादकता पर प्रहार हुआ। गोचर भूमि पर अंधाधुंध अतिक्रमण के कारण भी दायरा सिकुडऩे लगा। वर्तमान में वन विभाग, कृषि अनुसंधान विभाग, कृषि विभाग आदि सरकारी महकमों द्वारा किए जा रहे प्रयास नाकाफी साबित हो रहे है।
2017 में बीजों की बुवाई ओमप्रकाश विश्नोई ने बताया कि उन्होंने अपनी 100 बीघा जमीन पर जैसलमेर से 700 रुपए किलो की लागत से बीज लाकर जुलाई 2017 में बुवाई की। फिर घास को लगातार समय समय पर फव्वारों से पानी पिलाया। आज घास पूरे खेत में लहलहाने लगी है।
क्यों कहते हैं किंग ऑफ डेजर्ट रेगिस्तान में वनस्पति बहुत ही कम मिलती हैं, जो भी होती हैं वो कंटीली होती हैं। पोषण लायक वनस्पति नहीं होने से रेगिस्तान में दूर-दूर तक जीव नहीं मिलते हैं। लेकिन सेवण घास सामान्य घास की तरह हरी और पौष्टिक होती हैं। यह दस साल तक भंडारण करके रखने के बावजूद तो खराब नहीं होती हैं और न इसके पोषक तत्वों में कमी आती हैं। इसलिए वनस्पति शास्त्री इसे किंग ऑफ डेजर्ट नाम से पुकारते हैं।
इन्होंने कहा सेवण घास पशुओं के लिए पौष्टिक आहार है। इससे पानी का कटाव भी रोका जा सकता है । साथ ही ये कई सालों तक जीवित रहती है। – डॉ. महेंद्रसिंह चांदावत , वरिष्ठ वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र फलोदी।