महिलाओं की साहित्यिक संस्था संभावना की ओर से गोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें कवयित्रियों ने कविताएं सुनाईं। वहीं तारा प्रजापत की पुस्तक प्रीत विमोचन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉ. सावित्री डागा ने अपनी कविता शीर्षक चाहत अगरबत्ती सी जीऊं, चलूं धुआं -धुआं चुपचाप, हर्ष की लहर-लहर सुवासित करती, अंतिम कण तक, खुशबू देती, नि:शेष होती, शेष बची, चुटकी भर राख भी महमहाती है आस-पास.. पेश कर अभिभूत कर दिया। लीला कृपलानी ने हर मन की अपनी पीड़ा है, हर मन में है एक दर्द छिपा, इस पीड़ा और दर्द में ही, जीवन का सच्चा मर्म छिपा। रजनी अग्रवाल ने थोड़ा थोड़ा जीती हूं, थोड़ा-थोड़ा मरती हृु, यूं ही सफर में चलती हूं…सुशीला भंडारी ने जन्म दिन प्यारा, दो अक्टूबर लगता प्यारा, दो महान नेताओं का जन्म दिन प्यारा..पेश कर रंग जमाया। वहीं उषा शर्मा ने तीनों रामभक्त को क्यों को करूं प्रणाम, तब यह हृदय स्पर्शी दृश्य रखूँ सम्मुख रखूंू और पी.एन. भण्डारी का संदेश अच्छे दिन कब आएंगे …देश आपके उपदेश से नहीं आचरण से बदलेगा..कमल सुराणा के.. कह गए ये जल्दी आऊंगा, आंखें फटी-फटी रह गईं,उषा रानी पुंगलिया ने एक छोटी सी मुस्कान, डॉ. चांदकौर जोशी ने काहे पे गुमान करे, हे बहू रानी, तारा प्रजापत ने विलुप्त होती विनम्रता को क्या कोई बचा पाएगा?, विजय बाली ने अंधेरी रात में चुपके से आ जाते वो तो क्या होता है?, स्वाति ‘सरू जैसलमेरिया ने आईना देख क्यों आते हो तुम, याद दर्दे इश्क में गुजर गई सारी रात… रचना सुनाई। कार्यक्रम का संचालन स्वाति जैसलमेरिया ने किया।
.