वनविभाग मंडोर रेंज के मोतीसरा व बेरीगंगा वन क्षेत्र का क्षेत्रफल 12 हजार 668.16 बीघा याने करीब 5067.52 एकड़ है। सरकारी रेकर्ड में बेरीगंगा वन क्षेत्र का कुल 20.5 किलोमीटर एरिया वन विभाग की मिल्कियत है। मंडोर रेंज के बेरीगंगा वन क्षेत्र में खसरा संख्या 46, 47, 48, 1259, 1262, 1287, 1288, 1289, 1290, 1291, 1292, 1293, 1294, 1295, 1296, 1297, 1298, 1299, 1300, 1301,1302, 1302, 1303, 1304, 1305,1306, 1307, 1308, 1405, 1406 शामिल है। इनमें डायवर्जन प्रस्तावित केवल चार खसरे ही है जो 1294, 1405, 1259 व 1262 है। भारत सरकार की अनुमति जरूरी
राज्य सरकार ने 1962 में बेरीगंगा वन क्षेत्र को रक्षित वन क्षेत्र घोषित किया था । उसके बाद पुन: 1994 में संशोधित गजट नोटिफिकेशन जारी किया गया परन्तु खनन विभाग ने बेरीगंगा वन क्षेत्र में खनन पट्टे जारी कर दिए एवं साथ ही क्षेत्र में खनन गतिविधियां संचालित की जा रही है। इसके कारण बालसमंद नहर का आगोर क्षेत्र भी पूरी तरह तबाह हो चुका है। जोधपुर के पर्यावरणविद् रामजी व्यास की ओर से एनजीटी के समक्ष एडवोकेट विकास बालिया की ओर से दायर याचिका पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ) की चल पीठ ने बेरीगंगा वन क्षेत्र एवं बालसमंद नहर आगोर क्षेत्र में किसी भी तरह की खनन गतिविधि बिना पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की अनुमति के संचालित नहीं करने का आदेश दिया था। 20 हजार परिवारो की रोजी रोटी का सवाल
पश्चिमी राजस्थान में खनन क्षेत्र ही ऐसा उद्योग है जो जरूरतमंद को आसानी से रोजगार दिलाने में सहायक है। इसमें कुशल-अकुशल श्रमिक को भी सहज रूप से रोजगार मिलता है। जोधपुर खनन व्यवसाय में नागौर, बाड़मेर, जैसलमेर , मारवाड़ सहित मकराना, चुरू, सीकर, सीकर आदि विभिन्न क्षेत्रों के श्रमिक भी रोजगार के लिए जोधपुर पहुंचते है। राज्य व केन्द्र सरकार को खनन व्यवसाय से जुड़े प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष करीब 20 हजार से परिवारों के समक्ष रोजी रोटी के संकट को देखते हुए बेरीगंगा वन क्षेत्र के डायवर्जन प्रस्ताव को जल्द मंजूरी देनी चाहिए।
बेरीगंगा में बालसमंद नहर के जल ग्रहण और बहाव क्षेत्र में किसी भी तरह के खनन की इजाजत नहीं मिलनी चाहिए। बालसमंद नहर के केचमेंट एरिया में वन्यजीवों के आश्रय स्थल उजडऩे से हनुमान लंगूर, जरख, सियार, लोमड़ी, खरगोश, जंगली बिल्ली, नेवले, चंदनगोह, कछुए सहित विभिन्न प्रजाति के वन्यजीवों के आवास स्थल खत्म हो चुके है। वन्यजीवों के साथ पक्षियों की खाद्य शृंखला कुमटिया, पलाश, गुगल, बेर, केर आदि औषधिय पौधों का वजूद खत्म होने के कगार पर है। खनन के साथ अंधाधुंध हो रहे अतिक्रमण भी हटाने चाहिए।
बेरीगंगा वन क्षेत्र के सभी खसरों में खनन कार्य पिछले लंबे अर्से से पूरी तरह बंद है। बेरीगंगा वन क्षेत्र के डायवर्जन प्रस्ताव संशोधित कर भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के पास भेजे जा चुके है। जल्द ही डायवर्जन की प्रक्रिया पूरी होने की संभावना है।