‘हमारे कॉलेज में खेल की गतिविधियों के लिए खास कुछ नहीं है। खेल के लिए न तो मैदान है और ना ही सामग्री। अगर कोई छात्रा खेलों में अपना कॅरियर बनाना चाहती है तो उसे निराश होना पड़ता है। छात्र नेताओं ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है।
‘मैंने देखा कि सभी प्रत्याशी केवल वादे पर वादे कर रहा है। कोई यह नहीं सोच रहा है कि वादे पूरे कैसे होंगे। चुनाव में एक ऐसा छात्र नेता चाहिए तो पूरी ईमानदारी के साथ चुनाव लड़े। चाहे उसे हार का सामना करना पड़े लेकिन हार में सच नजर आए।
‘कई छात्राएं झालामण्ड, पाल, सांगरिया जैसे दूरदराज के क्षेत्रों से पढऩे के लिए आती हैं। छात्र नेताओं को चाहिए कि इनके लिए प्रशासन के साथ मिलकर नि:शुल्क बसों की व्यवस्था करें। अगर यह काम कर देते हैं तो लगेगा कि चुनाव व्यर्थ नहीं गया।
‘विवि के पुराना परिसर में कैंटीन नहीं है। अन्य कैंपस के भी यही हाल है। पढऩे के लिए आने वालों को इसके लिए कैंपस से बाहर की ओर रुख करना पड़ता है। छात्र नेता केवल वादे करके चले जाते हैं। सालों से कैंटीन कभी नहीं खुली है।
‘कॉलेज में विज्ञान की प्रयोगशालाओं का बहुत बुरा हाल है। प्रयोगशाला में कई उपकरण पुराने हैं। माइक्रोस्कोप नहीं है। स्लाइडें टूटी पड़ी हैं। हम तो प्रयोग करें तो करें कैसे? गेस्ट फैकल्टी पढ़ाने के लिए लगा रखी हैं, वह भी समय पर कक्षा में नहीं आते।
‘छात्र नेताओं के हर साल वही वादे हैं। न तो परीक्षा परिणाम समय पर आता है और ना ही पुनर्मूल्यांकन परिणाम। प्रवेश सूचियां भी देरी से जारी होती है। कक्षाओं में शिक्षक नहीं मिलते। मुझे लगता है कि इनके लिए नोटा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।