शहर से थोड़ा दूर ही है यह पक्षी धाम। चांदपोल से निकलते ही गोवर्धन तालाब से आगे ही भूतेश्वर वनखंड क्षेत्र में बना हुआ है यह पक्षीधाम।
जैसे ही इस पक्षीधाम में आप प्रवेश करेंगे तो आपकी निगाहें चारों तरफ अपने आप ही घूमने लग जाएंगी। जिधर भी नजर पड़ेगी आपको कबूतरों के झुंड ही झुंड दिखेंगे। कहीं जमीन पर दाना खाते नजर आएंगे तो कहीं खुले आसमां में पंख फैलाए, अपनी मस्ती में स्वछंद उड़ान भरते दिखेंगे। यह नजारा तो बस आप देखते ही रह जाएंगे। पक्षीधाम में तीन स्थान हैं, जहां कबूतर आसानी से दाना चुगते हैं। दाना खाने वाले स्थान के चारों तरफ जालियां लगा रखी हैं, ताकि आवारा श्वान चुग्गा स्थल पर कबूतरों को परेशान नहीं करें। लगातार पिछले 15 सालों से पक्षीधाम आ रहे विजय सिंह गहलोत बताते हैं कि पक्षी धाम करीब 25 सालों से बना हुआ है। रोजाना 8 से 10 हजार कबूतर यहां आते हैं और करीब 10 क्विंटल अनाज जिसमें मक्का, ज्वार, बाजरा व गेहूं डाला जाता है। यहां आपको कौवें भी नजर आएंगे। इनकी भी संख्या यहां काफी है। इनके लिए भी रोजाना 10-12 किलो चावल पकता है।
जैसे ही इस पक्षीधाम में आप प्रवेश करेंगे तो आपकी निगाहें चारों तरफ अपने आप ही घूमने लग जाएंगी। जिधर भी नजर पड़ेगी आपको कबूतरों के झुंड ही झुंड दिखेंगे। कहीं जमीन पर दाना खाते नजर आएंगे तो कहीं खुले आसमां में पंख फैलाए, अपनी मस्ती में स्वछंद उड़ान भरते दिखेंगे। यह नजारा तो बस आप देखते ही रह जाएंगे। पक्षीधाम में तीन स्थान हैं, जहां कबूतर आसानी से दाना चुगते हैं। दाना खाने वाले स्थान के चारों तरफ जालियां लगा रखी हैं, ताकि आवारा श्वान चुग्गा स्थल पर कबूतरों को परेशान नहीं करें। लगातार पिछले 15 सालों से पक्षीधाम आ रहे विजय सिंह गहलोत बताते हैं कि पक्षी धाम करीब 25 सालों से बना हुआ है। रोजाना 8 से 10 हजार कबूतर यहां आते हैं और करीब 10 क्विंटल अनाज जिसमें मक्का, ज्वार, बाजरा व गेहूं डाला जाता है। यहां आपको कौवें भी नजर आएंगे। इनकी भी संख्या यहां काफी है। इनके लिए भी रोजाना 10-12 किलो चावल पकता है।
यदि आपके पास थोड़ा और समय है तो इस पक्षी धाम में पीछे की तरफ चले जाइए। यहां आपको 400-500 पेडों के बीच हरियाली का आनंद तो मिलेगा ही साथ ही लुप्त हो चुकी गौरैया चिडिय़ा के चहकने व पेड़ों पर इधर-उधर फुदकने के नजारे को आप अपने कैमरे में कैद किए बिना नहीं रह पाओगे। एक ही स्थान पर हजारों की संख्या में गौरैया चिडिय़ा देखने के लिए शायद ही शहर में ऐसी दूसरी और कोई जगह मिले।
report-Rajesh dixit