आतुरगांव निवासी अनुसूचित वर्ग रमेश कुमार पिता कांशीराम गाड़ा को 1994-95 में खसरा नंबर 586 में रकबा 0.40 हेक्टेयर बड़े झाड़ के जंगल भूमि में कृषि के लिए पट्टा दिया गया था। इस भूमि पर सिर्फ खेती की जानी थी। 28 मार्च 2000 को ब्रम्हादेव मिश्रा पिता रामनंदन मिश्रा जाति ब्राम्हण निवासी सरोना ने किसी अन्य रमेश नाम के व्यक्ति को रजिस्टार के समक्ष खड़ाकर उक्त भूमि की रजिस्ट्री अपने नाम करा ली। काफी दिनों बाद मामला पकड़ में आया गया।
नियम के तहत पट्टा भूमि 10 साल से नीचे रजिस्ट्री नहीं हो सकती है। तत्कालीन कलक्टर डा. एसके राजू ने फर्जी रजिस्ट्री को खारिज कर दिया और तहसीलदार को पत्र जारी कर तत्काल उस भूमि को बड़े झाड़ के जंगल के नाम दर्ज करने आदेश दिया था। कलक्ट्रेट न्यायालय का फैसला 13 साल पहले 20 जुलाई 2005 में आया था। अभी तक न तो उक्त भूमि बड़े झाड़ के जंगल के नाम पद दर्ज किया गया न ही कब्जाधारी से मुक्त कराया गया। शाकसीय भूमि पर अब मकान खड़ा हो रहा है।
कांकेर तहसीलदार ने 23 नवंबर 2019 को हल्का पटवारी को पत्र जारी कर काम बंद कराए जाने का आदेश दिया था। पत्र जारी होने के 21 दिन बाद भी पटवारी ने न तो तहसीलदार को जबाव दिया न ही काम बंद कराया। वन विभाग की भूमि होने के बाद भी वन मंडल कांकेर के जिम्मेदार भी खाली कराने के लिए आगे नहीं आ रहे हैं।