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कांकेर

उज्ज्वला में गैस रिफिलिंग का 22.82 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ रहा ग्राफ, लक्ष्य भी बंद

शासन-प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद भी अंचल में उज्ज्वला गैस रिफिलिंग का ग्राफ नहीं बढ़ रहा है।

कांकेरAug 15, 2020 / 04:28 pm

Bhawna Chaudhary

lpg cylinder

No change in Domestic Gas Cylinder in Delhi, Mumbai And Chennai

कांकेर. शासन-प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद भी अंचल में उज्ज्वला गैस रिफिलिंग का ग्राफ नहीं बढ़ रहा है। तीन साल में 85 हजार से अधिक लोगों को गैस का वितरण किया गया लेकिन 19 हजार हितग्राही ही रिफिलिंग करा रहे हैं। शेष हितग्राही इन गैस सिलेंडरों को कबाड़ के मोल बेच रहे हैं। जबकि इस योजना में कांकेर जिले में 25 करोड़ से अधिक राशि गैस सिलेंडर पर खर्च की गई है।

केंद्र की पहल पर धुंआ मुक्त भारत बनाने के लक्ष्य के आधार पर हर गरीब परिवार को मुफ्त में गैस सिलेंडर और चूल्हा का वितरण किया गया है। वित्तीय वर्ष 2016-17 में 39,900 लोगों को गैस वितरण का लक्ष्य रखा गया था। जिसे खाद्य विभाग की मॉनिटरिंग में पूरा किया गया। वित्तीय वर्ष 2017-18 में 23,753 हितग्राहियों को गैस दिया गया। वित्तीय वर्ष 2018-19 में 42,996 हितग्राहियों को गैस सिलेंडर मुफ्त में देने का लक्ष्य रखा गया था। जबकि इस वर्ष मात्र 21,700 लोगों को ही गैस का वितरण किया गया। यानी तीन साल में 85 हजार 353 हितग्राहियों को गैस का वितरण किया गया, जो लक्ष्य का 80.03 प्रतिशत है। ऐसे हितग्राहियों को कोरोना काल में तीन माह तक मुफ्त में गैस रिफिलिंग के छूट का आश्वासन देने के बाद भी खासा वृद्धि नहीं दिखी। खाद्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार सिर्फ 22.82 प्रतिशत लोगों ने रिफिलिंग कराया है। नियम के आधार पर अगर 6 माह तक रिफलिंग नहीं कराया गया तो स्वतः कनेक्शन बंद होता जाता है। ऐसे में कोरोना काल में अधिकांश हितग्राहियों के खाता में गैस रिफिलिंग के लिए पैसा भी आया लेकिन लोगों ने रिफलिंग नहीं कराया।

जानकारों की माने तो इस योजना का लाभ सिर्फ 20 प्रतिशत लोगों को ही मिल रहा है। अधिकांश लोगों ने गैस सिलेंडर को या तो कबाड़ के भाव बेच दिया या उपयोग ही नहीं कर रहे हैं। ऐसे में धुआं मुक्त भारत का अभियान फेल होते जा रहा है। हालांकि इस योजना के बारे में अधिकांश ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें गैस सिलेंडर रिफिलिंग कराने में करीब एक हजार लगता है।

माह में एक हजार का काम नहीं कर पाते ऐसे में पेट भरने के लिए राशन की खरीदी करेंगे या गैस सिलेंडर की रिफिलिंग कराएंगे। अंतागढ़ से कोयलीबेड़ा क्षेत्र की रसोइयां ने कहा, गैस सिलेंडर पर खाना बनाना तो उन्हें भी अच्छा लगता है। लकड़ी चूल्हे के धुआं से मुक्ति के लिए गैस मिला है लेकिन गैस की रिफिलिंग के लिए पैसा कहां से आएगा। एक हजार में एक गैस भरेगा, उतने में तो परिवार का खर्च चल जाता है। लकड़ी का चूल्हा तो फूंकना ही पड़ रहा है। कुछ गृहणियों ने कहा, गैस रिफिलिंग के लिए 15 20 किमी दूर जाना पड़ता है।

गांव तक डिलीवरी के लिए किसी प्रकार संसाधन नहीं होने के कारण गैस की रिफलिंग नहीं हो पा रहे हैं। कोयलीबेड़ा क्षेत्र के ग्रामीणों ने कहा, उन्हें उम्मीद थी कि गैस सिलेंडर की रिफिलिंग में गरीबों को छूट मिलेगी। पर ऐसा नहीं हुआ, मजबूरी में लकड़ी का चूल्हा जला रहे हैं। कोरोना काल में भी उन्हें कुछ खास सुविधाएं नहीं मिली।

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